एकांत में वार्तालाप
अनुवाद : अरुण चंद्र राय
मेरे पड़ोसी
लगा रहे हैं आँगन में दीवार
बाँट रहे हैं आँगन
मजबूत हो रही है हमारे बीच
यह दीवार ।
मैं
आधा आँगन चलता हूँ
तभी मुझे एहसास होता है कि
भूल गया हूँ मास्क पहनना ।
मेरे सामने चींटियाँ
चल रही हैं एक दूसरे के पीछे
हम सभी चले जा रहे हैं कहीं
करते हुये भरोसा
मेरी खिड़की के बाहर
दो खंभों के बीच टंगी अलगनी पर
सुस्ता रही है एक गौरैया ।
पगडंडी पर गिरे पड़े हैं
पके हुये नींबू
जिन्हें बीनना है मुझे
झाल-मूरी
बनाने के लिए ।
नीली हवाओं के
हल्के छूअन से अधिक
कुछ भी नहीं कोई भी नहीं
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२३-०९-२०२१) को
'पीपल के पेड़ से पद्मश्री पुरस्कार तक'(चर्चा अंक-४१९६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
शुक्रिया अनिता जी
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुंदर भावों भरी रचना ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी।
हटाएंहकीकत को बयां करती है हुई अत्यंत सुंदर भाव वाली बहुत ही प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मनीषा जी।
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ज्योति जी
हटाएंभरोसा करते हुए … सुंदर लिखा है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शारदा जी।
हटाएंमेरे सामने चींटियाँ
जवाब देंहटाएंचल रही हैं एक दूसरे के पीछे
हम सभी चले जा रहे हैं कहीं
करते हुये भरोसा
सुंदर सार्थक।
वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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