गुरुवार, 16 सितंबर 2021

ईश्वर के प्रांगण में


ईश्वर के प्रांगण में 

प्रस्तरों पर उत्कीर्ण मुद्राओं को बताते हुए

मार्गदर्शक ने बताया कि

जब यह मंदिर नहीं था यहां

जब स्वयं ईश्वर भूमि से प्रकट नहीं हुए थे 

उससे भी पहले मौजूद था

वह वृक्ष और सरोवर।


वह आह्लादित होकर

बता रहा था ईश्वर की महिमा

भाव विभोर होकर बताया कि

किस तरह इस वृक्ष पर 

धागा बांधने से पूरी हुई मनोकामना 


मैने कहा 

है मार्गदर्शक ! 

ठीक पहचाना आपने 

ईश्वर यही वृक्ष और सरोवर तो है

जो पूरी करते हैं कामनाएं,

उसके बोलने का प्रवाह रुक गया

वह एक पल को सोचा और 

हां में सिर हिलाते हुए उसकी आंखें चमक उठीं

जैसे निर्वाण प्राप्त हो गया हो उसे

वह वृक्ष के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ और 

सरोवर में कूद गया।

- अरुण चंद्र राय

9 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ उलझी हुई सी रचना लगी । मंदिर का विवरण चल रहा था ।वृक्ष और सरोवर कहाँ से आ गया ?

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    1. पुराने मंदिर के पास आमतौर पर पुराना वटवृक्ष और सरोवर होता ही है।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
    'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. अद्भुत! बहुत सुंदता से ईश्वर के स्वरूपों पर ध्यान दिलाते भाव ।
    सच ईश्वर क्या है प्रकृति का देय रूप ही तो है।
    हर और दिखता है, मंदिरों के अलावा भी।
    बहुत सुंदर।

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  4. ईश्वर को प्राप्त करने...मार्गदर्शक को विश्वास था वृक्ष और सरोवर पर मन्नतें पूरी होने के बाद विश्वास और बढ़ा ...
    गुणगान करने पर दूसरों की स्वीकृति से विश्वास यकीन में बदलकर दृढ हो गया ...और मौक्ष की चाह भी..

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  5. वाह बहुत ही सूंदर पंक्तियाँ लिखी है आपने। इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।  Zee Talwara

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