ईश्वर के प्रांगण में
प्रस्तरों पर उत्कीर्ण मुद्राओं को बताते हुए
मार्गदर्शक ने बताया कि
जब यह मंदिर नहीं था यहां
जब स्वयं ईश्वर भूमि से प्रकट नहीं हुए थे
उससे भी पहले मौजूद था
वह वृक्ष और सरोवर।
वह आह्लादित होकर
बता रहा था ईश्वर की महिमा
भाव विभोर होकर बताया कि
किस तरह इस वृक्ष पर
धागा बांधने से पूरी हुई मनोकामना
मैने कहा
है मार्गदर्शक !
ठीक पहचाना आपने
ईश्वर यही वृक्ष और सरोवर तो है
जो पूरी करते हैं कामनाएं,
उसके बोलने का प्रवाह रुक गया
वह एक पल को सोचा और
हां में सिर हिलाते हुए उसकी आंखें चमक उठीं
जैसे निर्वाण प्राप्त हो गया हो उसे
वह वृक्ष के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ और
सरोवर में कूद गया।
- अरुण चंद्र राय
वाह| और मोक्ष को प्राप्त हुआ |
जवाब देंहटाएंकुछ उलझी हुई सी रचना लगी । मंदिर का विवरण चल रहा था ।वृक्ष और सरोवर कहाँ से आ गया ?
जवाब देंहटाएंपुराने मंदिर के पास आमतौर पर पुराना वटवृक्ष और सरोवर होता ही है।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंगहन रचना...।
जवाब देंहटाएंअद्भुत! बहुत सुंदता से ईश्वर के स्वरूपों पर ध्यान दिलाते भाव ।
जवाब देंहटाएंसच ईश्वर क्या है प्रकृति का देय रूप ही तो है।
हर और दिखता है, मंदिरों के अलावा भी।
बहुत सुंदर।
ईश्वर को प्राप्त करने...मार्गदर्शक को विश्वास था वृक्ष और सरोवर पर मन्नतें पूरी होने के बाद विश्वास और बढ़ा ...
जवाब देंहटाएंगुणगान करने पर दूसरों की स्वीकृति से विश्वास यकीन में बदलकर दृढ हो गया ...और मौक्ष की चाह भी..
वाह बहुत ही सूंदर पंक्तियाँ लिखी है आपने। इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। Zee Talwara
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