एक दिन
बूढ़ी हो जाएगी माँ
सूख जाएगा इस बगीचे का
सबसे पुराना वृक्ष
उठेगा मेरे घुटने में दर्द
बंद हो जाएंगा पत्नी का ऋतुचक्र
पुरानी किताबें दे दी जाएंगी
रद्दी वाले को
परचून की दुकान बंद हो जाएगी
गाँव के मुहाने पर खड़ा रिक्शावाला नहीं मिलेगा
और कभी गुलज़ार रहने वाला घर /जो अब बादल गया है
खंडहर में /जिसके आँगन में अब उग आए हैं
बरगद और पीपल
वे बरगद और पीपल और अधिक बड़े हो जाएंगे
बचपन में लगी थी जो फैक्ट्रियाँ
उनका धुआँ और अधिक काला पड़ जाएगा
जिन तालाबों का पानी पीते थे बेधड़क
वे तालाब सूख जाएंगे
और उदास हो जाएंगे नदियों के तट
जिनपर पर "मास" करने नहीं आया करेंगे आस्थावान श्रद्धालु ।
ऐसा नहीं है कि
यह सब पहली बार होगा
न ही होगा यह आखिरी बार ।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 25 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
समय के साथ नकारात्मकता के दृश्य उकेरता सार्थक हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंसही कहा हमेशा से होता आ रहा है और होता ही रहेगा हम कभी नहीं चेतेंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन।
परचून की दुकान बंद हो जाएगी
जवाब देंहटाएंगाँव के मुहाने पर खड़ा रिक्शावाला नहीं मिलेगा
और कभी गुलज़ार रहने वाला घर /जो अब बादल गया है
खंडहर में /जिसके आँगन में अब उग आए हैं