संकट में हैं नदियां
संकट में इनकी अटखेलियां
संकट में हैं पहाड़
संकट में है हमारा प्यार
संकट में हैं तितलियां
संकट में हैं मंजरियां
संकट में हैं तालाब
संकट में है इनका आब
संकट में हैं पेड़ की छांव
उखड़ रहे हैं इनके पांव
संकट में भालू शेर
हो रहे ये नित दिन ढेर
संकट में नहीं है पूंजी
संकट में नहीं है बाजार
तरह तरह की तरकीबें अपनाकर
रहता यह हरदम गुलजार।
समसामयिक रचना । भयंकर संकट की ओर ध्यान दिलाती हुई ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चिंता न करें कल्कि अवतार ले लिए हैं
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाज़िब मुद्दा उठाया है आपने।
जवाब देंहटाएंवाह गहन अर्थपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंचंद पक्षियों में सबकुछ कह दिया सर अंतिम पक्तियां मारक
जवाब देंहटाएं