शुक्रवार, 3 जून 2022

संकट

 संकट में हैं नदियां 

संकट में इनकी अटखेलियां 

संकट में हैं पहाड़ 

संकट में है हमारा प्यार 


संकट में हैं तितलियां 

संकट में हैं मंजरियां 

संकट में हैं तालाब 

संकट में है इनका आब 


संकट में हैं पेड़ की छांव 

उखड़ रहे हैं इनके पांव 

संकट में भालू शेर 

हो रहे ये नित दिन ढेर 


संकट में नहीं है पूंजी 

संकट में नहीं है बाजार 

तरह तरह की तरकीबें अपनाकर 

रहता यह हरदम गुलजार। 














6 टिप्‍पणियां:

  1. समसामयिक रचना । भयंकर संकट की ओर ध्यान दिलाती हुई ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर चिंता न करें कल्कि अवतार ले लिए हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. वाज़िब मुद्दा उठाया है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह गहन अर्थपूर्ण रचना |

    जवाब देंहटाएं
  6. चंद पक्षियों में सबकुछ कह दिया सर अंतिम पक्तियां मारक

    जवाब देंहटाएं