मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

तुम जाओ

अब मेरी जरूरत क्या 
हो आज़ाद, तुम जाओ 

मैं बरबस राह का कांटा 
इसे निकाल, तुम जाओ 

झूठी तारीफ़ें मिलेंगी अभी 
ठुकरा के सच, तुम जाओ 

की थी फिक्र उसने तो क्या 
झुठला के सब,  तुम जाओ 

बेहिसाब रोशनी चाहिए तुम्हें 
देकर मुझे अंधेरा, तुम जाओ 




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