मंगलवार, 18 मई 2010

नए रंग का बनना

नया रंग
बनता है
जब
ए़क रंग
खो दे
अपनी पहचान
किसी और रंग में

14 टिप्‍पणियां:

  1. जी हाँ ठीक कहा 'किसी के वजूद पर ही एक नया वजूद बनता है'

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  2. क्‍या बात है!
    बेहतरीन।
    शायद आज की कविता यही है जो आये और अपनी बात कहे और चली जाये मगर पढ़ने वाले की ऑंख दूर तक पीछा करती रहे।

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  3. waah!
    kuchh or kehne ki jarurat bhi to nahi.....


    kunwar ji,

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  4. bilkul sach kaha...kitne rang mite tab ye azaadii ka tang hame mila...

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  5. बडी गहरी बात कह दी…………खुद को मिट कर ही खुदा मिलता है।

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. जी हाँ ! बिलकुल सही कहा आपने ! ''खोज'' सिर्फ एक बार होती है ''आविष्कार'' तो निरंतर होता ही रहता है !
    आभार !
    धन्यवाद !

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  8. ऐ मेरे भाई, उस नए रंग का नाम भी तो लिखते शायद हम भी उस रंग में रंगना चाहें, पर जो भी है वो रंग होगा सबसे अलग, सबसे अनोखा, किसी के रंग में रंगने के बाद जो पाया है
    एक रंगीन से आभार साथ

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