यह पहनी गई है
कई कई बार
कई कई लोगों के द्वारा
याद नहीं
पैंट को भी अब
लेकिन
जैसे जैसे
बदली है टाँगे
बदला है
इस पैंट की वजूद भी
इसके उपयोगिता का स्तर भी
और ज्यो ज्यो घिसी है
अनमोल होती चली गई है
पैंट पहनने वाले के लिए
घिसी हुई पैंट
अर्थशास्त्र के नियम के
बिलकुल विपरीत होती है
कि
खाने का पहला कौर
अधिक संतुष्टि देता है
आखिरी कौर की अपेक्षा
और
घिसी हुई पैंट
सबसे अधिक संतुष्टि देती है
आखिरी बार पहनने वाले को
पहली बार
जब पहनी जाती है
पैंट
देती है ख़ुशी
लेकिन उसमे
देह ढकने का
वह भाव नहीं होता
जो होता है
घिसी हुई पैंट को
पहनने के बाद
घिसी हुई पैंट
विम्ब है
संघर्ष का
जिजीविषा का
सद्यः
मैंने भी
पहन रखी है
पीछे से घिसी हुई पैंट
और शर्मिंदा नहीं हूँ
मैं
आखिरी कौर
देती है मुझे
अधिक संतुष्टि