मजदूर औरतों की पीठ
अक्सर दिख जाती है
पाथते हुए उपले
गढ़ते हुए ईट
उठाते हुए धान की बोरियां
हांकते हुए बैल , गाय
चराते हुए बकरी
एक्सपोर्ट हाउस में काटते हुए कपडे
सिलते हुए सपने
या फिर
गहराती रात में स्ट्रीट लाईट के नीचे
मजदूर औरतों की पीठ
शक्ति पीठ होती हैं
ये पीठ
जिन पर खुदा होता है
सृजन का इतिहास
तरक्की के राजमार्ग पर
नहीं होता कोई साथ
मजदूर औरतों की पीठ के लिए
अनुसन्धान होते हैं
सामाजिक और आर्थिक शोध
किये जाते हैं
इन पीठों के रंग पर
बनाई जाती हैं
नीतियां
लेकिन सब की सब
चली जाती हैं दिखा कर पीठ
मजदूर औरतों की पीठ को
जब दे रही होती हैं औरतें
धरने , ज्ञापन
लगा कर काले चश्मे
सनस्क्रीन लोशन
मजदूर औरतों की पीठ
दिखा रही होती हैं
सूरज को पीठ
और सूर्य का दर्प भी
पड़ जाता है मंद
मजदूर औरतों की पीठ के आगे
भले ही
दिख जाती हो
मजदूर औरतों की पीठ
कभी पीठ नहीं दिखाती हैं
ये मजदूर औरतें ।
बहुत गहरी बात कही है, वाह!
जवाब देंहटाएंभले ही
दिख जाती हो
मजदूर औरतों की पीठ
कभी पीठ नहीं दिखाती हैं
ये मजदूर औरतें ।
इस सहज, सरल मगर जटिल कविता की अंतर्ध्वानियां देर तक और दूर तक हमारे मन मस्तिष्क में गूंजती रहती है।
जवाब देंहटाएंशक्ति पीठ होती हैं
जवाब देंहटाएंये पीठ
जिन पर खुदा होता है
सृजन का इतिहास
kamaal kaa roopak alankaar ...samvedanshil
भले ही
जवाब देंहटाएंदिख जाती हो
मजदूर औरतों की पीठ
कभी पीठ नहीं दिखाती हैं
ये मजदूर औरतें ।
वाह ...बहुत सुन्दर ..
सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं“कोई देश विदेशी भाषा के द्वारा न तो उन्नति कर सकता है और ना ही राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति।”
बहुत गहरे मन भाव से रची गयी ये कविता ..........अतिउत्तम .
जवाब देंहटाएंभले ही
जवाब देंहटाएंदिख जाती हो
मजदूर औरतों की पीठ
कभी पीठ नहीं दिखाती हैं
ये मजदूर औरतें ।
awesome!!
अब क्या कहूँ इस बारे मे……………ये भी नही कह सकती कि वाह्…………नही, कुछ कहने लायक तो आपने छोडा ही नही……………एक गहरा सच दिखाया है जो अपने आप बोलता हैउस के लिये शब्द कम क्या होते ही नही।
जवाब देंहटाएंशक्ति पीठ होती हैं
जवाब देंहटाएंये पीठ
जिन पर खुदा होता है
सृजन का इतिहास
तरक्की के राजमार्ग पर.......sach kaha, per har kisi kee aankhen kahan itni paardarshi hoti hain, we to sirf pith tak simit rahte hain
man moh liyaa is rachanaa ne.
जवाब देंहटाएंsir...........jo aapne likha wo to sahi tha.......lekin news paper ke page three pe bhi bahut saare aurton ke peeth deekhte hain, unke baare me kya kahenge...........:)
जवाब देंहटाएंjaandaar kavita!!
शशक्त रचना है ... धूप की तरह तेज़ हक़ीकत बयान करती ....
जवाब देंहटाएंjaandaar kavita!!
जवाब देंहटाएंमन को छूकर झकझोर गयी आपकी यह अद्वितीय रचना...
जवाब देंहटाएंसचमुच ये पीठ दिखाना नहीं जानती...
वाह अरुण भाई ! निरालक स्मरण करा देलौंह.... "वह तोड़ती पत्थर ! उसे देखा था मैं ने इलाहबाद के पथ पर.... !! सत्य कहल अपने... वास्तविक सौन्दर्य त मानव जीवनक सौंदर्य छैक ने... ! श्रम ओहि मे सर्वोपरि ! प्रस्तुत कविता में अपने पुरान शब्द मे नव प्राण भरैत सामजिक-आर्थिक विषमता आ तद्जन्य विद्रूपताक मर्मस्पर्शी चित्रण सफलतापूर्वक केने छी !! कोटिशः धन्यवाद !!! एक टा अनुरोध, "अहाँ अपन संपर्क संख्या हमर ई-मेल keshav.karna@gmail.com पर पठयेबाक कृपा करब... ?
जवाब देंहटाएंभले ही
जवाब देंहटाएंदिख जाती हो
मजदूर औरतों की पीठ
कभी पीठ नहीं दिखाती हैं
ये मजदूर औरतें ।
दमदार पंक्तियाँ।
भले ही
जवाब देंहटाएंदिख जाती हो
मजदूर औरतों की पीठ
कभी पीठ नहीं दिखाती हैं
ये मजदूर औरतें
गहरे भाव और व्यथा सहेजे हुए