लहर
ए़क बार
ऊपर उठती है
और
दूसरी बार
जितनी उठती है ऊपर
उतनी ही
जाती है नीचे भी
मन के भाव भी हैं
लहर के समान
जब तुम
होते हो पास
यह ऊपर उठती है
ख़ुशी के आवेग से
और जब
तुम्हारे दूर होने का
आता है ख्याल
मन में
यह उतनी ही
चली जाती है नीचे
अवसाद से
मन की
लहरों को
किसी 'लेम्डा' से
मापा भी नहीं जा सकता
ना ही है कोई
दूसरी इकाई
तुम्हारे सिवा
लहर
जो मन के भीतर है
तुम तक
पहुँच रही है क्या !
लहर
जवाब देंहटाएंहरहरा कर
आती है
जाती है
पर मन को
सदा हरा
कर जाती है
जबकि
हरापन
पर्यावरण की
थाती है।
मन के
जवाब देंहटाएंलहरों को
किसी 'लेम्डा' से
मापा भी नहीं जा सकता
ना ही है कोई
दूसरी इकाई
तुम्हारे सिवा
अद्भुत! अभिव्यक्तिओं के नए आयाम गढती आपकी अभिव्यक्ति मन को छू गई।
bahut bahut pyaari rachnaa
जवाब देंहटाएंकितना डूब कर लिखते हैं आप ?
जवाब देंहटाएंलहर
जवाब देंहटाएंजो मन के भीतर है
तुम तक
पहुँच रही है क्या !
जब इतनी शिद्दत से लिखते हैं तो कैसे नही पहुँचेगी…………………एक बेहद भावप्रवण अभिव्यक्ति।
lahron ka yah ufaan kabhi na thame..... shubhkamna
जवाब देंहटाएंलहर
जवाब देंहटाएंजो मन के भीतर है
तुम तक
पहुँच रही है क्या !
awesome!!!!
मन के भाव भी हैं
जवाब देंहटाएंलहर के सामान
जब तुम
होती हो पास
यह ऊपर उठती है
ख़ुशी के आवेग से
और जब
तुम्हारे दूर होने का
जब आता है ख्याल
मन में
यह उतनी ही
चली जाती है नीचे
अवसाद से..... bahut sundar bhaw
bahut umda rachna hai... bhavnaon ke sagar mai gotee khati dil ki kashti lehro ke adeen bahe ja rahi hai...
जवाब देंहटाएंआपकी कविता पढ़कर आपके मन की लहरों को तो अब लाइट ईयर से नापने का समय आ गया है।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंएक बेहद भावप्रवण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंbahut khoob Arun ji..........me to fan ho gaya apka
जवाब देंहटाएंman ke bhaw ko laharo se tulna karna achchha laga hame......:)
जवाब देंहटाएंइतना सब कुछ कहने बाद ये संशय क्यों की
जवाब देंहटाएं"लहर
जो मन के भीतर है
तुम तक
पहुँच रही है क्या !"
भाव पूर्ण रचना ....
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