ए़क अरसे से
नहीं रोया मैं
पता है मुझे
ना ही
रोये होंगे
आप
ऐसे नहीं है कि
रोने का समय नहीं है यह
लेकिन देखा है मैंने
इन दिनों
रोना छोड़ दिया है
हम सबने
याद है मुझे
गाँव में ए़क चाचा जी गुजर गए
और रात को सन्देश मिला
बहुत मन किया रोने का
लेकिन रो ना सका
फ़ुटबाल विश्व कप का
फ़ाइनल मैच जो आ रहा था
एक्स्ट्रा टाइम में जाने की वजह से
बहुत टेंशन में था मैं
भूल गया था
कैसे उनके कंधे पर चढ़ कर
जाया करता था हाट
तैरना भी
उन्होंने ही सिखाया था
बेमानी हैं
वे बातें
ऐसे ही
कई और भी मौके आये
लेकिन रोना ना आया
ए़क समय था
जब गली मोहल्ले क्या
अपने कसबे में
किसी भी उच नीच , मरनी-हरनी में
हो जाया करता था शामिल
खूब रोया करता था
सगे के लिए
पराये के लिए भी
लेकिन
अब कहाँ
पिछली बार
जब मुंबई दहली थी
सीरियल बम विस्फोट से
खूब रोया था मैं
देश की हालात पर
शिराओं में
बढ़ गया था रक्त संचार
सडको पर उतर आया था
धरने और ज्ञापन दिए थे
अपने कसबे में भी
कोई ऐसा हादसा ना हो जाये
खूब की थी मेंहनत
लेकिन
जब ताज में बंधक बनाया था
सैकड़ो लोगों को
मज़े से देखा था लाइव
चिप्स, चाय और काफी के
दौर पर दौर के साथ
इस बार
कहाँ आया रोना
बाबूजी ने
जब खरीद दी थी साइकिल
दसवी पास होने पर
खूब रोया था मैं
ख़ुशी से
माँ भी रोई थी
बाबूजी जिन्हें साइकिल चलानी नहीं आती
वे भी रोये थे
छुप छुप कर
साल साल में जब
बादल जाती है कार यहाँ
कहाँ से आयेगी वो ख़ुशी
कहाँ से आएगा रोना
हाँ , टी वी सीरियल के सिचुएशन पर
जरुर करता हूँ बहस
जरुर करता हूँ विलाप
इस गर्मी छुट्टी
आम खाने को माँ ने बहुत बुलाया
चिट्ठी भी भेजी
फ़ोन पर बहुत रोई
नहीं समझ आया
उनका रोना
लगा बूढी हो रही है
माँ
और
इसी बात पर आज
रोने का मन कर रहा है
आइये ना
मेरे साथ रोइए !
रचना बहुत दूर तक बहा कर ले गई यादों में...
जवाब देंहटाएंलगा बूढी हो रही है
जवाब देंहटाएंमाँ
और
इसी बात पर आज
रोने का मन कर रहा है
आइये ना
मेरे साथ रोइए !
Is baat pe to aapne hame rulahi diya!
जब ताज में बंधक बनाया था
जवाब देंहटाएंसैकड़ो लोगों को
मज़े से देखा था लाइव
चिप्स, चाय और काफी के
दौर पर दौर के साथ
सुन्दर रचना
सम्वेदनाओं के चुकने का एक कारण घटनाओं की पुनरावृत्ति है.
बाबूजी ने
जवाब देंहटाएंजब खरीद दी थी साइकिल
दसवी पास होने पर
खूब रोया था मैं
ख़ुशी से
माँ भी रोई थी
बाबूजी जिन्हें साइकिल चलानी नहीं आती
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
बहुत अच्छी प्रस्तुति। कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है ।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
दर्द के सच्चे एहसासों को जी लें ........मैं हूँ उपस्थित
जवाब देंहटाएंबेहतरीन उम्दा पोस्ट
जवाब देंहटाएंब्लॉग4वार्ता पर स्वागत है आपका
चेतावनी-सावधान ब्लागर्स--अवश्य पढ़ें
सच में जो मन महसूस करता है वही उकेर देती है लेखनी .... एक बार फिर आँख नम कर दी आपने
जवाब देंहटाएंअरुण जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
आज आदमी स्वार्थी हो गया है आप से एक बात सांझा करना चाहुगा '' महोबत में आदमी रोता है तो मुहछुपा लेता है मगर रोने कि बारी आती है तो नहीं रोने का बहाना ढूंढता है '' सुंदर अभिव्यक्ति है ,
साधुवाद
shbdon ki hook saaf jhalak rahi hai..too gud!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रवाहमयी रचना ...
जवाब देंहटाएंअरुन जी..एक तरफ दोगली मानसिकता वाला समाज अऊर दोसरा तरफ माँ का निस्छल प्यार… सच्चा अऊर सम्बेदंसील आदमी आजकल बाथरूम के अंदर रोता है, सबके सामने रोने से घबराता है, आँसुओं का बदनामी होने से!!
जवाब देंहटाएंआज एक बार फिर अपने साथ बहा ले गये और बहुत ही सही कटाक्ष है आज के इंसाने मे खत्म होती संवेदनाओं पर्……………ऐसे ही लिखते रहें।
जवाब देंहटाएंरो सकने वाले इंसान आज विलुप्त होने की कगार पर हैं. इस प्रजाति को बचाए रखने की मुहिम में हम आपके साथ है.
जवाब देंहटाएंपढ़कर आँखें नम हो गयीं। निःशब्द हूँ।
जवाब देंहटाएंकैसी विडम्बना है ये भी!!!!!!!
जवाब देंहटाएंहाँ , टी वी सीरियल के सिचुएशन पर
जवाब देंहटाएंजरुर करता हूँ बहस
जरुर करता हूँ विलाप
- इन बदलती परिस्थितियों के बावजूद . मन कभी कभी अहसास दिया देता है -
और
इसी बात पर आज
रोने का मन कर रहा है
... अंतिम पंक्तियां कुछ ज्यादा ही मार्मिक हैं, प्रसंशनीय रचना !!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... रिश्ते भी जैसे प्लास्टिक के हो गये हैं ... खिलोने हो गये हैं ,... चाभी से रोते हैं हंसते हैं ... संवेदनशील रचना है ...
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