कृष्ण
पुरुषोत्तम नहीं थे
तुम
तभी तुमने
दिखाया
सत्य के परे भी
है अस्तित्व
सत्य से च्युत हो भी
संभव है विजय
सजा है
फिर से वही दरबार
नगर नगर
द्रौपदियां सहज हो
स्वीकार कर रही हैं
दुर्योधन का प्रस्ताव
शकुनि हो गया है
बहुराष्ट्रीय
फिर
कैसा यह विलाप
आज जब
नए महाभारत के लिए
तैयार है
कुरुक्षेत्र
अर्जुन
नहीं है द्वन्द में
भीष्म को
नहीं है कोई प्रायश्चित
कौरवों की ओर होने का
और स्वयं तुमने
बदल लिया है पाला
दुर्योधन की ओर से
खड़े हो तुम
सब कुछ
बदल गया
कृष्ण
लेकिन
नहीं बदली राधा
प्रभावित
नहीं कर पाया उसे
तुम्हारा बीज मंत्र
"कर्मण्ये वा..."
उसे अब भी
इच्छा है
फल की
जन्माष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंहिन्दी भारत की आत्मा ही नहीं, धड़कन भी है। यह भारत के व्यापक भू-भाग में फैली शिष्ट और साहित्यिक भषा है।
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!
यकीनन कृष्ण पुरुषोत्तम नहीं थे -तभी तो वह अधिक मानवीय थे .
जवाब देंहटाएंराधा राधा थीं -कोई किसी जैसा या किसी के अनुरूप कैसे हो सकता है .कविता बढिया है .
कृष्ण प्रेम मयी राधा
जवाब देंहटाएंराधा प्रेममयो हरी
♫ फ़लक पे झूम रही साँवली घटायें हैं
रंग मेरे गोविन्द का चुरा लाई हैं
रश्मियाँ श्याम के कुण्डल से जब निकलती हैं
गोया आकाश मे बिजलियाँ चमकती हैं
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
बहुत सटीक अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
लाजवाब रचना...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत अच्छी कविता,सटीक अभिव्यक्ति जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंराधा सदैव ही राधा रहेगी।
जवाब देंहटाएंkhubsurat abhivyakti.......:)
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना.........वाह
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