मेरी नींद
तुम्हारे पास,
तुम्हारे पहलू में
लौटाना मत
इस जिंदगी
आगे और
कई जिंदगी
कई जिंदगी
नहीं चाहता मैं
देखूं सपने ,
चाहता हूँ
जागूं पूरी रात
और सोचूँ
तुम्हारे बारे में
जिऊँ
और सोचूँ
तुम्हारे बारे में
जिऊँ
तुम्हारी हंसी को
और
और
सुनूं मैं
तुम्हारी धड़कनों को
तुम्हारी धड़कनों को
और
सुनता रहूँ
सारी उम्र
मत लौटाना
मेरी नींद तुम
मेरी नींद तुम
बहुत सुन्दर रचना है!
जवाब देंहटाएं--
सच तो यह है कि आप साठोत्तरी कविता को जीवित रक्खे हुए हो!
मत लौटाना
जवाब देंहटाएंमेरी नींद तुम
नींद को लौटा लीजिये वे शायद सपनों में आयें.
खूबसूरत रचना.. रूमानी सी
zindgi ki hqiqt bhut khub byaan ki he mzaa aa gyaa bdhayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंरह गई है
जवाब देंहटाएंमेरी नींद
तुम्हारे पास,
तुम्हारे पहलू में
लौटाना मत
इस जिंदगी
आगे और
कई जिंदगी
apki iss rachna par wo geet yaad aa gaya, "mera kuch saman tumhare pass pada hai, sab bijwa do mera wo saman lauta do...
बडी रूमानी कविता लिखी है जिसमे मोहब्बत भी है और शिकायत भी और एक कशिश भी……………बहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंएक और उम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव युक्त
जवाब देंहटाएंरचना है...बहुत बहुत बधाई...
नये विचार इस समतल पर, प्रभावित करते विचार श्रंखला।
जवाब देंहटाएंइसे पढ़ते हुए रोमांच, प्रेम, उदासी और प्रसन्नता से होकर गुजरना पड़ा!
जवाब देंहटाएंmat laotana meri neend ...jagta rahu mahsoosta rahu har pal tumhe ..kavita ke liye pratikriya du...par in ehsason ko sirf mahsoos karne deejiye.....
जवाब देंहटाएंवाह !!!
जवाब देंहटाएंएक बार किसी ने यह कहकर कि मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है वो भिजवा दो, दिल को चीर कर रख दिया था.. वो फहरिश्त आज भी रात के सन्नाटे में सवाल पूछती है. और आज आपने बाकी का चैन लूट लिया यह कहकर कि मेरी नींद मत लौटाना तुम. अरूण जी, एक दर्द क्या कम था जो आपने दूसरा दे दिया!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
जागूं पूरी रात
जवाब देंहटाएंऔर सोचूँ
तुम्हारे बारे म
बहुत सुन्दर अभिव्यक्त्ति भावों की.......
नहीं चाहता मैं
जवाब देंहटाएंदेखूं सपने ,
चाहता हूँ
जागूं पूरी रात
और सोचूँ
तुम्हारे बारे में
बहुत सुन्दर भाव ...
कशिश
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंकाव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
जागूं पूरी रात
जवाब देंहटाएंऔर सोचूँ
तुम्हारे बारे में
बहुत सुन्दर भाव हमेशा की तरह लाजवाब
नहीं चाहता मैं
जवाब देंहटाएंदेखूं सपने ,
चाहता हूँ
जागूं पूरी रात
और सोचूँ
तुम्हारे बारे में.....
bahut hi romantic prastuti...bahut sundar..aabhar..
bahut hi khoobsurat rachna
जवाब देंहटाएंनहीं चाहता मैं
देखूं सपने ,
चाहता हूँ
जागूं पूरी रात
और सोचूँ
तुम्हारे बारे में.....
खूब, बहुत खूब। कवि हृदय के साथ यही समस्या है, दुनिया से अलग ही उसकी रीत होती है, दुनिया जिस नींद को बेताब है कवि उसे ठुकरा रहा है।
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