चुप हो तुम
चुप हैं हम
लेकिन बाते हैं
जो रुक ही नहीं रहीं ।
कह नहीं रही
तुम कुछ
कह नहीं रहा
मैं कुछ
लेकिन
कुछ बाकी नहीं
कहने को ।
इसलिए तो
कहते हैं
कहने के लिए
शब्द जरुरी नहीं
और
जरुरी नहीं कि
हो कोई भाषा
हो कोई बोली
हो कोई व्याकरण ।
बिना शब्द भी
बोलती हैं हवाएं
गुनगुनाती हैं तितलियाँ
पुकारते हैं पत्ते
और तुम्हारी आँखे
कहती हैं मन की बातें ।
चुप तुम रहो, चुप हम रहें
जवाब देंहटाएंखामुशी को, ख़ामुशी से, बात करने दो!!
मौन के सम्वाद सबसे मुखर होते हैं!
ज़रूरी नहीं शब्द ...पर मौन तो बड़ा वाचाल होता है .सक्रिय भागीदारी से बचने की खूंखार साजिश .कायरता पर तटस्था का आवरण ..चालाक बगुले का एक अचूक आखेटक हथियार .
जवाब देंहटाएंचुप रहना ...चुप कर दिए जाने का निर्लज्ज प्रदर्शन तो नहीं -एक बेशर्म आड़
जो भी अरुण यह कविता अनेक कविताओं के बीज अपने में समाहित किये है .बधाईयाँ.
shabdo ki koi bhasha nahi hota...:)
जवाब देंहटाएंkya idea hai sir jee........:D
Idea ka advertisement yaad aa gaya:)
truly brilliant Arun ji ..
जवाब देंहटाएंkeep writing...........all the best
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
जवाब देंहटाएंमौन के शब्द ऐसे ही होते हैं ..सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह !!!! वाह !!!!!
जवाब देंहटाएंइसलिए तो
कहते हैं
कहने के लिए
शब्द जरुरी नहीं
और
जरुरी नहीं कि
हो कोई भाषा
हो कोई बोली
हो कोई व्याकरण
"और न कोई प्रितिक्रिया"
ये आप लिखना भूल गए शायद. मैं भी चुप रहूंगी कोई प्रतिक्रिया नहीं दूंगी. आप तो मौन पढना अच्छी तरह जानते हैं. है न....
वाह...बेजोड रचना है ये आपकी...बधाई..
जवाब देंहटाएंनीरज
आँखों की बातों में न जाने कितने भाव छिपे हैं।
जवाब देंहटाएंmoun bahut shaktishalee hai............
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachana......
Aabhar