बुधवार, 8 सितंबर 2010

गीला है मन का आँगन

झीनी झीनी बूंदे
स्वागत में
खडी की मैंने
और आया
तुम्हे लेने कि
चलो तुम
मेरे मन के
आँगन

तुमने पूछा
क्या करोगे ले जाकर
अपने मन के आँगन

मैंने कहा
गीला है मन का आँगन
वहां
आगे आगे
तुम चलना
और गीली मिटटी पर बने
तुम्हारे पैरों के निशान पर
रख कर चलूँगा मैं
अपने पैर
मानो साथ साथ चले हो हम
होने देना यह भ्रम
आखिरी बार

फिर
तुम प्रवेश करना
पूजा घर में
जहाँ पसार देना
अपना आँचल और
उठा लेना
भगवती की अचरी से
ए़क लाल फूल
माथे से लगा लेना उसे
और फिर
लौट आना

विश्वास करो
कभी कम नहीं होगी
तुम्हारी मांग की लाली
तुम्हारा दर्प का सुर्ख लाल रंग
तुम्हारे मन का रंग भी
नहीं होगा कभी धूमिल

हाँ
ए़क बात करना
वो लाल फूल
रख लेना
उसी डिबिया में
जो दी थी मैंने
अपनी पहली मुलाकात में

देखो
झीनी झीनी बूंदे
लगी हैं बरसने
न जाने किसने
खबर दी हैं उन्हें
मेरे मन की .

13 टिप्‍पणियां:

  1. अरुण बाबू इस कविता ने तो जाते जाते और पढ़ते-पढ़ते बहुत उतार चदाव के अनुभव दी हैं. बहुत हार्दिक रचना है. आपकी अन्य रचनाओं से अलग मूड की है. मगर मुझे ठीक लगी. आप सभी भावों में लिख लेते हैं ये वैविध्य अच्छा है.बाकी आपकी रचनाएं जो मानव समाज को एक दम कचोटती है ,सीधा असर करती नज़र आती है.उनका जवाब नहीं होता. सच कह रहे हैं,. ये मन बहलाने की बात नहीं.

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  2. इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है। ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती तथा रिश्तों की पाक़ीज़गी का अहसास मन को गहरे भिंगो देता है। भाव इतने स्पष्ट हैं कि वे कल्पना के अनंत गर्भ में लीन हो गये हैं।

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  3. आगे आगे
    तुम चलना
    और गीली मिटटी पर बने
    तुम्हारे पैरों के निशान पर
    रख कर चलूँगा मैं
    अपने पैर
    मानो साथ साथ चले हो हम

    wah kya bat hai ...bhaut sunder ahsaas

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  4. kai baar kuch kah paana mushkil hota hai... hum kya chahte hain aur kya milta hai , isse pare chaah apni jagah rahti to hai... maine in nishaanon kee garima ko samjha hai

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  5. विश्वास करो
    कभी कम नहीं होगी
    तुम्हारी मांग की लाली
    तुम्हारा दर्प का सुर्ख लाल रंग
    तुम्हारे मन का रंग भी
    नहीं होगा कभी धूमिल
    आह बहुत खूबसूरत कविता लिखी मनो दिल निचोड़ कर रख दिया हो.
    बहुत सुन्दर और मार्मिक कविता है

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  6. बहुत ही कोमल और भावुक प्रेमाभिव्यक्ति।

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  7. अच्छी और कोमल भावनाओं को समेटे हुए है यह रचना ...

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  8. मनोभावों का खूबसूरत चित्रण्।

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  9. देखो
    झीनी झीनी बूंदे
    लगी हैं बरसने
    न जाने किसने
    खबर दी हैं उन्हें
    मेरे मन की .
    ये लो हमारे घर पर भी झीनी झीनी बूंदे शुरू हो गयी हैं उन्हें भी पता चल गया भावपूर्ण प्रेमाभिव्यक्ति।

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