आज
माँ उधेड़ रही है
पुराने स्वेटर
भीगी आँखों से
और एक चलचित्र चल रहा है
उसके भीतर
माँ उधेड़ रही है
पुराने स्वेटर
भीगी आँखों से
और एक चलचित्र चल रहा है
उसके भीतर
कैसे माँ बुनती थी
स्वेटर
जाग कर
स्वेटर
जाग कर
रात रात भर
सोच सोच कर
खुश हो रही आज
याद आ रहा है उसे
कैसे स्वेटर में
भर देना चाहती थी
कैसे स्वेटर में
भर देना चाहती थी
वो सब कुछ
जो नहीं दे पाती थी वो
जैसे चाँद - सितारे
हाथी घोड़े
गुड्डे-गुडिया
लेकिन नहीं बनाया उसने
स्वेटर में कभी
बन्दूक का डिजाईन
जो नहीं दे पाती थी वो
जैसे चाँद - सितारे
हाथी घोड़े
गुड्डे-गुडिया
लेकिन नहीं बनाया उसने
स्वेटर में कभी
बन्दूक का डिजाईन
उसे प्रिय था
नीला रंग
कहती थी
आसमान का रंग है यह
और प्रार्थना में
हिल जाते थे होठ
कि आसमान जितनी ऊँची हो
हमारी उपलब्धि
समंदर तो कभी देखा नहीं
फिर भी करती थी
नीले समंदर के सामान
विशाल ह्रदय की कामना
मेरे लिए
मैल पचने के लिए भी
अच्छा रंग हुआ करता है नीला
नीला रंग
कहती थी
आसमान का रंग है यह
और प्रार्थना में
हिल जाते थे होठ
कि आसमान जितनी ऊँची हो
हमारी उपलब्धि
समंदर तो कभी देखा नहीं
फिर भी करती थी
नीले समंदर के सामान
विशाल ह्रदय की कामना
मेरे लिए
मैल पचने के लिए भी
अच्छा रंग हुआ करता है नीला
पता था माँ को भी
आज माँ
उन्ही
पुराने स्वेटरों को
उधेड़ कर
बना रही है नया स्वेटर
अपने लिए
बना रही है
एक कोलाज अपने भीतर
अलग अलग समय के पुराने स्वेटरों से
जिस स्वेटर को पहन कर
एक कोलाज अपने भीतर
अलग अलग समय के पुराने स्वेटरों से
जिस स्वेटर को पहन कर
दी थी मैट्रिक की परीक्षा
बहुत प्रिय था माँ को
सहेज कर रखी थी उसे आज तक
बहुत प्रिय था माँ को
सहेज कर रखी थी उसे आज तक
ऐसे ही कई
मील के पत्थर स्वेटर थे
माँ की पेटी में
जिन्हें उधेड़ रही है आज
माँ
जी रही है
पुराने ऊन के माध्यम से
सुनहरे दिनों को
उनके फीके पड़ते रंगों में
ढूंढ रही है हमारे बचपन के
चटक रंग को
रिश्तो की गर्माहट को
सहेज रही है
पुराने ऊन को फिर से
बुन कर
जी रही है
पुराने ऊन के माध्यम से
सुनहरे दिनों को
उनके फीके पड़ते रंगों में
ढूंढ रही है हमारे बचपन के
चटक रंग को
रिश्तो की गर्माहट को
सहेज रही है
पुराने ऊन को फिर से
बुन कर
पुराने ऊन के स्वेटर में
जी रही है माँ
नया जीवन
नए सिरे से
स्वेटर के माध्यम से ज़िन्दगी की तल्ख सच्चाइयां उकेर दी हैं…………माँ के प्रेम के साथ समाजिक व्यवस्था पर भी रोशनी डाली है साथ ही माँ अपनत्व और नये पुराने के संगम का खूब खाका खींचा है।
जवाब देंहटाएंअरुण जी,
जवाब देंहटाएंसच कहूं आपकी ये कविता पढ़कर आँखें नाम हो गयी हैं...पता नहीं क्यूँ... क्या सच में इतनी भावुक कविता है ये या फिर मैं आज कल कुछ ज्यादा ही संवेदनशील होता जा रहा हूँ....
मेरे ब्लॉग पर
विश्व की दस सबसे खतरनाक सडकें.... ...
आह बहुत खूबसूरत बिम्ब का प्रयोग .दिल की तह पर दस्तक देती कविता.
जवाब देंहटाएंआपकी यह कविता कोई जादुगरी नहीं वास्तविक जीवन की सक्षम पुनर्रचना है सर्जनात्मक ऊर्जा की सक्रियता है।
जवाब देंहटाएंमां के स्वेटर बुनने की तरह।
मकसद है - सबकी जिंदगी बेहतर बने। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
विचार::आज महिला हिंसा विरोधी दिवस है
आज माँ
जवाब देंहटाएंउन्ही
पुराने स्वेटरों को
उधेड़ कर
बना रही है नया स्वेटर
अपने लिए
बना रही है
एक कोलाज अपने भीतर
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
bahut sunder rachana... puraane oon ke zariye yaadon ki duniya bunti pyari maa... shubhkamnaayen!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति...भावों को बहुत गहराई से लिखा है|
जवाब देंहटाएंbahut achchhi prastuti, purane samay ki vo bhavukta,vo apnapan sab sanjo liya hai aapne...
जवाब देंहटाएंमाँ के बुने स्वेटर बहुत याद आते हैं, अभी भी।
जवाब देंहटाएंपता नहीं कितनी बार शरीर में गर्मी की एक लहर दौड गयी ...स्वेटर के बुने जाने का माँ से रिश्ता है ये तो जानता था मैं लेकिन यह नहीं पता था की इसके पीछे इतने रहस्य छुपे होते हैं /..दरअसल माँ को स्वेटर बुनते हुए कभी गौर से देखा नहीं ..आज अपनी नज़र पे अफ़सोस हो रहा है ... ये नज़्म तो हर सर्दी में पढ़ना चाहूँगा ...
जवाब देंहटाएंमाँ के एहसासों को गर्माहट देती रचना ..बहुत सुन्दर है ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट का लिंक कल शुक्रवार को (२६--११-- २०१० ) चर्चा मंच पर भी है ...
http://charchamanch.blogspot.com/
अरुण जी! जीवन में पता नहीं कितनी सर्दियाँ देखीं, लेकिन उनमें भी बस कुछ ही अवसर ऐसे होंगे जब बाज़ार के बुने स्वेटर पहने हों. जो प्यार माँ (मेरी और मेरी बिटिया की माँ भी) उन ऊन के धागों में बुनती थी, उसकी गर्मी का मुक़ाबला कोई भी तपिश नहीं कर सकती.
जवाब देंहटाएंउधेड़ बुन का काम करती हुई भी माँ के प्यार में कोई उधेड़बुन नहीं रहा. पुराने स्वेटर को उधेड़कर उन सभी ऊन को मिलाकर, मेरी बिटिया और बेटे का स्वेटर बुन देती है माँ. जिसने कभी आसमान सी ऊँचाई और समंदर की गहराई की दुआ दी थी नीले रंगों में, उसने ही सतरंगे बुने स्वेटर के माध्यम से बच्चों के सतरंगी जीवन का संदेश भी दे डाला.
आपकी अभिव्यक्ति के आगे मैं नतमस्तक हूँ!!
अरुण जी
जवाब देंहटाएंआपकी कविताएं सरसरी तौर पर नहीं पढ़ी जा सकती .... इनकी गहराई में उतरने का एक ख़ास मूड होता है आज उसी मूड में हूँ ...इस बेहतरीन रचना के साथ पुराणी कई रचनाओ को पुन: पढ़ा है बधाई स्वीकार करे
ऐसे ही कई
जवाब देंहटाएंमील के पत्थर स्वेटर थे
माँ की पेटी में
जिन्हें उधेड़ रही है आज
माँ
भावनात्मक अभिव्यक्ति .. ..मील के पत्थर ...वाह -वाह....बहुत सुंदर
... sundar rachanaa !!!
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना है ! शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंपुराने स्वेटर के माध्यम से पुराने पलों की उष्मा को सहेजने के पीछे छिपे प्यार भरे समंदर के आशीषमय स्पर्श ने दिल की गहराईयों को छू लिया और निशब्द कर दिया. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
बहुत कमाल होते हैं यह पुराने स्वेटर ...... माँ की डांट की गर्मी और स्नेह की नरमी लिए.....
जवाब देंहटाएंसुंदर भावाभिव्यक्ति
A poem with a catching title and a fine piece of writing.
जवाब देंहटाएंAsha
sir ji
जवाब देंहटाएंaaj aapki rachna ne bahut bhaavuk kar diya hai mujhe .. main jyaada kuch nahi kah paaunga ..
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
उधेड़ते ही धड़ अलग
जवाब देंहटाएंऔर उर अलग
कैनन का एस एक्स 210 : खरीद लूं क्या (अविनाश वाचस्पति गोवा में)
विश्व सिनेमा में स्त्रियों का नया अवतार : गोवा से अजित राय
अमिताभ बच्चन ने ट्रैक्टर चलाया और ट्विटर पर बतलाया
सिनेमा का बाजार और बाजार में सिनेमा : गोवा से
कैसे स्वेटर में
जवाब देंहटाएंभर देना चाहती थी
वो सब कुछ
जो नहीं दे पाती थी वो
जैसे चाँद - सितारे
हाथी घोड़े
गुड्डे-गुडिया
लेकिन नहीं बनाया उसने
स्वेटर में कभी
बन्दूक का डिजाईन!
कितना कुछ कह गयीं ये पंक्तियाँ . .
पुराने ऊन के स्वेटर में
जवाब देंहटाएंजी रही है माँ
नया जीवन
नए सिरे से
बहुत ही संवेदन शील ... माँ की हर बात निराली होती है .... दिल में उतर गयी ये रचना ....
यह भावुक रचना मन भिंगो आँखों को गयी...
जवाब देंहटाएंक्या प्रशंसा करूँ इसकी...
इस कलम को नमन !!!
क्षमा करें..उपर्युक्त टिपण्णी में टंकण त्रुटि रह गयी थी...कृपया उसे हटा दें...
जवाब देंहटाएंयह भावुक रचना मन आँखों को भिंगो गयी...
क्या प्रशंसा करूँ इसकी...
इस कलम को नमन !!!
चित्र की भांति गुजरे वक्त की छवि समग्रता में साकार हो उठी!!!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति!
अरुण जी,
जवाब देंहटाएंदिल करता है कि आपके कराम्बुजों पर अधराधर छाप दूँ...! माँ जिस तन्मयता से...दिल में प्रेम-नेह की अक्षय रसधार लेकर अपने बेटे के लिए स्वेटर बुनती है, भावों की वही तन्मयता आपकी इस रचना की बुनावट में भी दिखायी पड़ी!
मैं इसे कविता के साथ-साथ... माँ के ममत्व का कृतज्ञ अभिनंदन भी कहूँगा!
आपको कोटिशः साधुवाद!
one of your best creation..hats off!
जवाब देंहटाएंभर देना चाहती थी
जवाब देंहटाएंवो सब कुछ
जो नहीं दे पाती थी वो
जैसे चाँद - सितारे
हाथी घोड़े
गुड्डे-गुडिया
लेकिन नहीं बनाया उसने
स्वेटर में कभी
बन्दूक का डिजाईन
पुराने स्वेटर की गर्माहट याद आ गयी। इस उम्र तक भी सम्भाल कर रखा है एक स्वेटर। माँ जैसा कोई नही। माँ ही है जो पुरानी चाज़ मे भी नई ऊर्जा भर देती है। लाजवाब रचना। बधाई।
बहुत ही सुन्दर लिखते हैं आप... बधाई
जवाब देंहटाएंकितने खूबसूरत एहसासों को रचा है आपने !!!
जवाब देंहटाएंअरुण जी..ये एक खास बात है आपमें जो हर जगह नही मिलती अपने आस पास गुजरती हुई चीज़ों से एक रचनात्मकता पिरो लेते है..आज भी खूब कही आपने.......एक बेहतरीन कविता ..लगता है अपने आस पास से निकल रही है....सुंदर कविता के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंbahut sunder aur dil ko chu lene wali kavita hai
जवाब देंहटाएंसर्वोपरी तो वो ही है "माँ" लाजवाब रचना।
जवाब देंहटाएं