१
होना चाहा था
मैंने तुम्हारी बिंदी
तुमने कहा
बन जाओ
उतार दिया तुमने
अगली सुबह
२
खुश थी तुम
जब मैं ने कहा था
बना लो
अपनी बिंदी मुझे
तुम्हारी हाँ से
खुश हुआ था
मैं भी कितना
आज जब
मिल नहीं रहा था
मेरा रंग
तुम्हारी साडी के रंग से
तुमने देखा भी नहीं
मेरी ओर
३
एक बार
तुमने कहा था
मुझे
अपने माथे की बिंदी
मैंने वादा किया
चमकने को चिरंतन
मैं चमकता रहा
सूरज की तरह
दिन भर
उतारती रही तुम
हर रात .
आदरणीय अरुण चन्द्र रॉय जी..
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
किसकी बात करें-आपकी प्रस्तुति की या आपकी रचनाओं की। सब ही तो आनन्ददायक हैं।
.........आपकी लेखनी को नमन बधाई
अरुण जी..
जवाब देंहटाएंकैसे लिख जाते हो ऐसा सब
वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई
एक बार
तुमने कहा था
मुझे
अपने माथे की बिंदी
मैंने वादा किया
चमकने को चिरंतन
मैं चमकता रहा
सूरज की तरह
दिन भर
उतारती रही तुम
हर रात .
..बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..
वाह!
जवाब देंहटाएंअद्भुत!!
लाजवाब!!!
pyaar aur ek khone ki taklif - dono hai is rachna me
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,
जवाब देंहटाएंएकदम नए भावों और नए कथ्य से सजी, चमकती हुई कविता।
बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भाव भरे हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबडे गज़ब के भाव भरे हैं बिन्दी को लेकर्………………सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंshandaar..............lekhni ki dhar ko naman aur dharak ko bhi!
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है... अद्भुत प्रयोग है और बारीक भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
वाह....
जवाब देंहटाएंअभिनव प्रयोग....
लेकिन स्त्री एक बार यदि इस बिंदी को माथे से लगा ले तो ,केवल माथे से नहीं मन से लगा लेती है और माथे से इसे मन भरने के कारण,यह पानी से धुले गले नहीं ,इसलिए उतारती है..माथे से यह उतर भी जाये पर मन से यह कभी नहीं उतरती..
प्रताड़ित और व्यथित पुरुष भी होते हैं ...मगर अभिव्यक्त नहीं कर पाते ..
जवाब देंहटाएंबहुत कम ही पढने को मिलती है ऐसी रचनाएँ ...
मैं रंजना जी से भी सहमत हूँ !
एक बार मजरूह साहब ने कहा था,"तेरी बिंदिया रे" और आज आपने कह दिया. बिंदिया के ये तीन शेड्स वाकई निंदिया उड़ाने के लिए काफी हैं... एक नए अंदाज़ में रूमानियत बिखेरती कवितायें!!
जवाब देंहटाएंbehatar
जवाब देंहटाएं........अद्भुत प्रयोग अरुण जी..
जवाब देंहटाएंएकदम नए भावों से सजी बेहद............ख़ूबसूरत
जवाब देंहटाएंकविता।
भाई वाह...प्रशंशा के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास...विलक्षण रचना है ये आपकी...अद्भुत प्रयोग किया है बिंदी के साथ...लाजवाब..
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत ही ख़ूबसूरत रचना.
जवाब देंहटाएंKatal hai bhai...teenon ki teenon katal hai...hatz off...bahut hi achhi..
जवाब देंहटाएंसभी शब्दचित्र बहुत बढ़िया रहे!
जवाब देंहटाएंबहुत ही ख़ूबसूरत रचना. शब्दचित्र...लाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंbahoot hi sunder chitra ke sath khoobsurat kavita..
जवाब देंहटाएंपरिवार में गर्व और गौरव, एक सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता। सुन्दर भावों के साथ साथ प्रतीकों में अद्भुत अर्थ प्रयोग किया है आपने।
जवाब देंहटाएंबधाई।
बहोत ही अच्छी रचना......
जवाब देंहटाएंचित्र भी अच्छा है और कविता भी
जवाब देंहटाएंआपको बधाई
भई वाह !!!!! ये माजरा क्या है ?????? समझने में समय लगेगा!!!!!! इतना मक्खन लगाओगे बिंदिया पर तो सर्दी में जम जायेगा
जवाब देंहटाएंबिन्दी पर भी रचना....वाह! बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .. बिंदी के माध्यम से दिल की भावनाओं को व्यक्त करना .... गज़ब की कल्पना है अरुण जी ...
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