शनिवार, 29 मई 2021

अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं

 रात हुई है तो सवेरा दूर नहीं 

अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं 

थक कर रुक गए तो बात अलग 

चलते रहे तो समझो मंजिल दूर नहीं। 



मुश्किल में बेशक है मानव आज 

ठप्प पड़े हैं सब काम काज 

हार कर बैठ जाए तो बात अलग 

गिरकर उठ गया तो संभालना दूर नहीं 

अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं 


खो दिए किसी ने मां किसी ने बाप

लगी किसी की नजर किसी का शाप 

दुनिया का अंत इसे समझ लो बात अलग 

वरना समय का पलटना दूर नहीं 

अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं


ज़िन्दगी के दिन सीमित हैं सबने कहा 

गीता रामायण पुराण सबमें यह लिखा 

पंचतत्व का मोह मिटा नहीं तो बात अलग 

मृत्यु के भय का जाना अब दूर नहीं 

अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं। 










14 टिप्‍पणियां:

  1. इसी उम्मीद पर चल रही दुनिया। दूर न होते हुए भी उजाला दिख नहीं रह । बस अब मृत्यु से भय नहीं लगता ।
    बहुत सुंदर कविता ।

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  2. मुश्किल में बेशक है मानव आज
    ठप्प पड़े हैं सब काम काज
    हार कर बैठ जाए तो बात अलग
    गिरकर उठ गया तो संभालना दूर नहीं
    अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं

    👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन, बहुत ही उमदा रचना! 👌👌👌

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  3. आपकी लिखी  रचना  सोमवार  31 मई  2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।संगीता स्वरूप 

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  4. आदरणीय सर, आशा का दीप जलाती सुंदर रचना जो हमें कोरोना-काल का डट कर सामना करने की प्रेरणा दे रही है। हार्दिक आभार व आपको प्रणाम।

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  5. रात बेशक विकट अंधेरी है, पर सुबह जरूर आएगी ! यह विश्वास है, प्रभु पर भरोसा है

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  6. अन्त होगा इसका भी, आशा की किरण खिलेगी।

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  7. जलते जंगल पर बारिश के छींटे।
    आशा का संचार करती सुंदर रचना।

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  8. पंचतत्व का मोह मिटा नहीं तो बात अलग
    मृत्यु के भय का जाना अब दूर नहीं
    अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं।
    सकारात्मक भावों से सजी रचना अरूण जी। मृत्यु का भय मिट जाए तो जीना आसान हो जायेगा। हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏

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