बुधवार, 22 दिसंबर 2021

लुइस मुनोज की कविता ओह ! का अनुवाद

हवाओं में फैली

महंगे समानों से भरी 

थैलियों की आवाज

जैसे रेत के गड्ढों के पंजों के बीच

अटखेलियां करती हवा । 


सुबह सवेरे पकौड़ों की दुकान की आवाज

जिसका फर्श  साफ किया गया है

अभी अभी और

चमक उठी हैं इसकी दीवारें

ग्राहकों की आवाजाही से पहले। 


- अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय

(लुइस मुनोज स्पेनिश कवि हैं। इनकी छोटी कविताएं अत्यंत जटिल होती हैं और विशेष अर्थ एवं भाव लिए होती हैं, जिसे समझने के लिए कविता के भीतर प्रवेश करना होता है।)

2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (23-12-2021 ) को 'नहीं रहा अब समय सलोना' (चर्चा अंक 4287) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय

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