पानी सा होना
कहना तो आसान है
लेकिन कितने ही लोग हैं
जो हो सकते हैं पानी सा !
पानी का नहीं होता है
अपना कोई रंग
वह रंग जाता है
जो ही रंग मिला दे उसमें
कुछ लोग पानी सा ही होते हैं
रंग जाते हैं किसी के ही रंग में
भुला कर अपना अस्तित्व ।
पानी का कहाँ होता है
अपना कोई आकार
कुछ लोग हमारे बीच होते हैं
पानी से
जो किसी के भी अनुसार, किसी के विचार में
जाते हैं ढल जैसे ढलता है पानी !
सुना है गंध या स्वाद भी
नहीं होता है पानी का
लेकिन वह किसी भी गंध और स्वाद को
बना लेता है अपना
हमारे बीच कई बार पाये जाते हैं
ऐसे लोग भी जो किसी भी गंध और स्वाद को
अपना लेते हैं छोड़ कर अहंकार
पानी जैसा जो हो जाती दुनियाँ
पानी जैसे जो हो जाते लोग
दुनिया से खत्म हो जाती
तृष्णा, घृणा, द्वेष, क्लेश, ईर्ष्या, अहंकार !
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