जल नहीं देने से
खेतों के लिए
पशुओं के लिए
मनुक्ख की प्यास के लिए
जो वह बांध दी गई !
बांधी गई नदियां
अकेली बहती रही
रिसती रही
किसी ने नहीं पूछा उसका दुख
उसकी पानी से बनी बिजली से
रोशन होते रहे शहर !
कब हवा ने उठाई थी
कभी आपत्ति कि
सांस लेने से पहले उससे पूछो
फिर भी उसे बना दिया गया
जहरीला
जहरीले हवा को साफ करने के लिए
बनाई गई नीतियाँ
बनी योजनाएँ
लेकिन सब हवा ही रही और
हवा का दम इधर घुटता रहा
अंधेरी कोठरी में !
वृक्षों ने कभी मना नहीं किया
देने को अपनी छाया
देने को अपने फल
फिर भी काटा गया उन्हें
देने के लिए रास्ता
बसाने के लिए नए घर
वृक्षों से बने सामान पर
कभी नहीं लिखा गया इनका नाम
ये रहे सदैव बेनाम, गुमनाम !
जरूरात के समय
जो निभाते हैं साथ
वे अक्सर ही
काट दिये जाते हैं जड़ों से
या फिर बांध दिये जाते हैं
गतिहीन कर दिये जाते हैं
या फिर कर दिये जाते हैं दूषित
रहते हैं गुमनाम !
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