सच कहता हूँ
मैंने तुमसे प्यार नहीं जताया
जब से मिला हूँ तुमसे
मुझे लगी तुम धरती सी
धैर्य से भरी
मुझे लगी तुम पानी सी
प्रवाह से भरी
मुझे लगी तुम अग्नि सी
तेज से भरी
मुझे लगी आकाश सी
विस्तार से भरी
मुझे लगी तुम हवा सी
गति से भरी
अब बताओ भला
जब कम पड़ रहे हों शब्द
जब हल्के लग रहे हों आभार के वचन
कैसे कोई प्रेम जता सकता है
उनके प्रति जिनसे है उसका जीवन, उसका अस्तित्व
बस इतना ही कहूँगा कि
अब मेरा अस्तित्व है तुमसे !
वाह
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रेम कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
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