यह जो
रंगमंच पर हो रहा है
लिखी गयी है
इसकी स्क्रिप्ट
कहीं और
किसी और उद्देश्य से
ये पात्र
जो संवाद कर रहे हैं
सब झूठे हैं
सब बनावटी हैं
सब मुखौटे हैं
होठ इनके जरुर हैं
लेकिन स्वर इनका नहीं
दया के पात्र हैं ये
यह जो उत्साह दिख रहा है
सब खुशफहमी है
भीतर के दवाब को
कम करने की कोशिश है यह
जो जितना उत्साहित दिखता है
उतना सफल पात्र है वह
इस बीच
कुछ ऐसे भी पात्र हैं
जिन्होंने मना कर दिया था
लगाने को मुखौटा
ईमानदार शब्दों का साथ नहीं छोड़ा
और हाशिये पर पहुंचा दिए गए हैं
नेपथ्य से
नियंत्रित होता है
यह रंगमंच
किन्तु
पटाक्षेप होता है
अंत में
bahut bahut bahut pasand aai kavitaa
जवाब देंहटाएंऔर जब अंत में परदा गिरता है तो अभिनय की जगह हकीकत से साक्षात्कार होता है और तब कोई स्क्रिप्ट भी नहीं होता
जवाब देंहटाएंजिन्होंने मना कर दिए थे
जवाब देंहटाएंलगाने को मुखौटा
रंगमंच को जीवनमंच से कितनी सरलता से सम्बद्ध कर दिया है।
pardaa girane kaa intjaar bahut labdaa hotaa hai .
जवाब देंहटाएंइस बीच
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसे भी पात्र हैं
जिन्होंने मना कर दिया था
लगाने को मुखौटा
ईमानदार शब्दों का साथ नहीं छोड़ा
और हाशिये पर पहुंचा दिए गए हैं
बिलकुल सही.....अच्छी प्रस्तुति
BHAI ARUN JI ,
जवाब देंहटाएंMAIN AAPKKA BLOG NIYMIT DEKHTA HUN ! AAP BAHUT ACHHI KAVITAYEN LIKH RAHE HAIN | SAMKALEEN KAVITA ME AAP NISHCHAY HI MUKAAM BANAYENGE | MERI SHUBH KAMNAYEN SADAIV AAPKE SATH HAIN> AAP KI IS KAVITA KA YE ANSH MUJHE PRABHAVIT KAR GAYA-
ये पात्र
जो संवाद कर रहे हैं
सब झूठे हैं
सब बनावटी हैं
सब मुखौटे हैं
होठ इनके जरुर हैं
लेकिन स्वर इनका नहीं
दया के पात्र हैं ये
IS ANSH KI YE PANKTIYAN BADAL JATI TO JYADA SUNDRTA AATI-
नेपथ्य से
नियंत्रित होता है
यह रंगमंच
किन्तु
पटाक्षेप होता है
अक्षपटल के समक्ष !
उफ़्……………।गज़ब का विश्लेषण्।
जवाब देंहटाएंकल (26/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
नेपथ्य से
जवाब देंहटाएंनियंत्रित होता है
यह रंगमंच
किन्तु
पटाक्षेप होता है
अंत में
जीवन के इस रंगमंच के नेपथ्य में कौन है कोई नही जानता ... बहुत अच्छे रचना है ...
इस बीच
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसे भी पात्र हैं
जिन्होंने मना कर दिया था
लगाने को मुखौटा
ईमानदार शब्दों का साथ नहीं छोड़ा
और हाशिये पर पहुंचा दिए गए हैं
बहुत ही सशक्त रचना .....ज़िन्दगी की सच्चाई पेश करती .....
हर चहरे ने पहन रखा है नकाब यहाँ
नोटों की गटठियों खुलता है पर्दा यहाँ .....
sundar shbdon ki anupam kriti !
जवाब देंहटाएंजिन्होंने मना कर दिया था
जवाब देंहटाएंलगाने को मुखौटा
ईमानदार शब्दों का साथ नहीं छोड़ा
और हाशिये पर पहुंचा दिए गए हैं
अच्छी प्रस्तुति. बहुत ही सशक्त रचना
गर गिरा दिया पर्दा पहले ही तो सारी असलियत सामने ....
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसे भी पात्र हैं
जवाब देंहटाएंजिन्होंने मना कर दिया था
लगाने को मुखौटा
ईमानदार शब्दों का साथ नहीं छोड़ा
और हाशिये पर पहुंचा दिए गए हैं
..........
वाह !
बहुत ही सशक्त रचना ....
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