बस्तर
तुमने मुझे शर्मशार कर दिया
तुम्हारे नाम से डरते हैं
मेरे बच्चे
पत्नी कभी लौट कर
आने को नहीं कहती
सुना है
पत्ते काले पड़ गए हैं
और हवा में जलते हुए मांस के बदबू आती है
मेरे बस्तर
ऐसे तो ना थे तुम
ना ही ऐसे बस्तर की
कल्पना की थी हमने
लाल रंग
हमारा जीवन था
उर्जा था
आशा का प्रतीक था
नए सूरज का द्योतक था
लेकिन
मेरे लाल रंग को
क्यों कर दिया तुमने बदरंग
मेरे बस्तर
ऐसे तो ना थे तुम
भूख जरुर थी
लेकिन मानुष के खून के भूखे तो ना थे हम
नया सवेरा जरुर चाहते थे हम
लेकिन इतना अँधेरा तो नहीं था
मेरे सपनो की सुबह
मेरे बस्तर
ऐसे तो ना थे तुम
लौटा दो मेरा बस्तर
शांत सहज सरल सौम्य बस्तर
बहुत खुब अरुन जि ह्र्दय कि अकुलहत को जिस तरह से आप ने शब्द दिये है अद्भुद है
जवाब देंहटाएंसादर
प्रवीन पथिक
9971969084
aapki har rachna tajgi se paripurn hai..saral shbdon ka gehan arth liye!
जवाब देंहटाएंमन की पीड़ा सहज ही निकली है इस रचना में....बहुत सुन्दर और संवेदनशील अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंलेकिन मानुष के खून के भूखे तो ना थे हम
जवाब देंहटाएंye bhookh abhi naa jaane kitno ko khaayegi ,behad marmik rachnaa
पीड़ा स्पष्ट झलक रही है. काश!! वो पुराना बस्तर लौट पाये. बस, प्रार्थना की जा सकती है.
जवाब देंहटाएंaapki peeda samjhi ja sakti hai........ye lal rang wale kab samajh payenge......!!
जवाब देंहटाएंबस्तर के दर्द का साकार चित्रण - बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबस्तर की पीड़ा को आपने शब्दों में पिरोया।
सामाजिक समस्याओं का इतना सरलीकरण मत करो .बरसों से दबे -कुचले लोगों का पक्ष भी जान लो .सशस्त्र सेनाओं के आगे जो सीना तान कर खड़े हैं ,उनके सामने तो खतरे ही खतरे हैं .फिर भी वो लड़ रहे हैं ...कोई तो वज़ह ज़रूर होगी .आर्मी देर या सवेर अपनी कार्यवाही करेगी ही .सरकार तो अपने पक्ष में माहोल बना रही है ताकि माओवादिओं के खिलाफ बर्बर कार्यवाही को जस्टिफाई कर सके .ध्यान से देखो तुम्हारी कविता किस वर्ग की पक्ष्धारिता कर रही है ?
जवाब देंहटाएंबुरा मत मानना खालिस तारीफ कना मुझे नहीं आता.
bahut jabaat ke sath dard chhipa dekha ...aap dard ko ukerne me safal huye
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट ब्लाग4वार्ता में
विद्यार्थियों को मस्ती से पढाएं-बचपन बचाएं-बचपन बचाएं
भूख जरुर थी
जवाब देंहटाएंलेकिन मानुष के खून के भूखे तो ना थे हम
नया सवेरा जरुर चाहते थे हम
लेकिन इतना अँधेरा तो नहीं था
मेरे सपनो की सुबह
मेरे बस्तर
ऐसे तो ना थे तुम
बहुत ही सुन्दर रचना। बस्तर तो होते जा रहा है बदतर।
लौटा दो मेरा बस्तर
जवाब देंहटाएंशांत सहज सरल सौम्य बस्तर ........ Aman ke liye vyakul bhav.... prasangik rachna..... sadhuvaad.....
बेहद संवेदनशील रचना ..मन की पीड़ा को बेहतरीन शब्द दिए हैं.
जवाब देंहटाएंलौटा दो मेरा बस्तर
जवाब देंहटाएंशांत सहज सरल सौम्य बस्तर
is aahwaan par lautega... bastar mahua se mahak kar lautega :)
bahut khub likha aapne...antas tak utarte shabd
bastar ki asahjata ko sahaj roop me prastut kiya hai aapne.
जवाब देंहटाएंhar jagah sahajta ho isi bhavna ke sath....shubhkamnayen....
पहले लाल सलाम और बस्तर लौटा दो!!!!!!!!!!!!!!!! क्या खूब. पर कह किससे रहे हो, कोई सुन भी रहा है क्या ????????? ...
जवाब देंहटाएंदर्द का साकार चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
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