संस्कृति
ए़क दिन में नहीं बनती
ना ही ए़क दिन में
होता है प्यार
संस्कृति के
निर्माण के लिए चाहिए
सभ्यता का विकास
किसी नदी के तट पर
कई युद्ध और
ए़क युग बोध
प्रेम के लिए भी
चाहिए ए़क नदी
किसी के भीतर बहती हुई
ए़क युद्ध
कई बार स्वयं से
और ए़क युग बोध
अर्थात आँखों में सपने
संस्कृति और प्रेम
पर्याय हैं
ए़क दूसरे के
जैसे
मेरा पर्याय तुम !
संस्कृति और प्रेम
जवाब देंहटाएंपर्याय हैं
ए़क दूसरे के
जैसे
मेरा पर्याय तुम
-बहुत गहरी बात कही है आपने.
अरुण ये हुई न बात गहरी और मजबूत सभ्यता की तरह
जवाब देंहटाएंachhee hai
जवाब देंहटाएंप्रेम की गहराई नाप लेना कोई आसान काम थोड़े ही है
जवाब देंहटाएंसंस्कृति और प्रेम
जवाब देंहटाएंपर्याय हैं
ए़क दूसरे के
जैसे
मेरा पर्याय तुम
kya bata kahi ...bhaut sahi
अरुण जी,
जवाब देंहटाएंविचार का बादल उठा लेकिन ठीक बरसा नहीँ! बरस जाता तो मौसम बदल जाता! अपने विचार को पुनः सहेजो और देखो कि उसकी यात्रा को गंतव्य मिला कि नहीँ ?
*आज आपके ब्लाग पर बहुत सी कविताएं पढ़ी ।कविताओँ मेँ अपेक्षाकृत उत्तरोतर निखार है। बधाई !
संस्कृति और प्रेम
जवाब देंहटाएंपर्याय हैं
ए़क दूसरे के
जैसे
मेरा पर्याय तुम
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
संस्कृति और प्रेम
जवाब देंहटाएंपर्याय हैं
ए़क दूसरे के
जैसे
मेरा पर्याय तुम !
अत्यंत उन्नत विचार की कविता ..
चलिये अब प्रेम की संस्कृति को सींचा जाये।
जवाब देंहटाएंप्रेम के लिए
जवाब देंहटाएंचाहिए ए़क नदी
किसी के भीतर बहती हुई
........ ज़िन्दगी वहीँ मिलती है संस्कृति वहीँ से निःसृत होती है
वाह वाह अरुण जी………………गज़ब का चिन्तन है आपका…………………बडा गहरा उतर जाते हैं और हर बार एक नायाब मोती ढूँढ लाते हैं।
जवाब देंहटाएंkamaal ki rachna hai aapki..wah!
जवाब देंहटाएंप्रेम के लिए भी
जवाब देंहटाएंचाहिए ए़क नदी
किसी के भीतर बहती हुई
ए़क युद्ध
कई बार स्वयं से
और ए़क युग बोध
अर्थात आँखों में सपने
this poem is really brilliant !
what similarity you brought on the table , just marvelous...
अत्यंत उन्नत विचार की कविता.........
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