समय की कसौटी
जब लेती है
परीक्षा
कहाँ खड़ा हो पाया कोई
इतिहास में
हारे हैं
सिपाही अपने ही वार से
और
कई युद्ध नहीं हुए हैं
मैदान में
समय के चक्र में
अनायास और अचानक ही
हुए हैं घायल
प्रारब्ध और नियति
समय से कहाँ
होड़ ले पाया कोई
इतिहास में
लेकिन
समय का अपना गणित है
अपनी व्याख्या है
आमतौर पर
कहते हैं उसे
समझौता
और लोगों को स्वीकार्य हैं
समझौते
समय के वितान पर
ए़क याचक हूँ मैं
तुम्हारे कुछ पलों का
जिन्हें बंद कर लेना चाहता हूँ
अपनी आँखों में
अपने ह्रदय में
और
अमिट कर देना चाहता हूँ
तुम्हे
हर समय से परे
प्रारब्ध और नियति की पहुँच से
बहुत बहुत दूर
नए समय में
गुरुवार, 22 जुलाई 2010
समय की कसौटी
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समय की कसौटी
जवाब देंहटाएंजब लेती है
परीक्षा
कहाँ खड़ा हो पाया कोई
इतिहास में .......
............
समय की कसौटी पर वे खड़े होते हैं
जिनमें आग होती है
सत्य का तेज प्रोज्ज्वलित होता है
और वे जीतते हैं ...
arun jee
जवाब देंहटाएंnamaskar !
samay ne kabhi kisi ko nahi kahsha swayam ishwar ko bhi phir aadami ki kya bisat hai . samay hi apne saath hume chalne ko vivash karta hai .ek sunder abhivyakti ke liye badhai
sadhuwad.
narendera vyas
समय हमेशा ही सोच से आगे चलता है...
जवाब देंहटाएंbahut khoob itne gehre vichaar kahan se laate hai
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी ये शानदार कविता
जवाब देंहटाएंअले वाह, कित्ती प्यारी कविता....अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएं***********************
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
जवाब देंहटाएंसमय के सामने कौन टिका है, अन्ततः सब निढाल हैं।
जवाब देंहटाएंजब लेती है परीक्षा कहाँ खड़ा हो पाया कोई!
जवाब देंहटाएंसमय के चक्र में
जवाब देंहटाएंअनायास और अचानक ही
हुए हैं घायल
प्रारब्ध और नियति
bahut khoob kaha aapne ,samay se bane samay ke chakra me fanse sahi samay ki bat johate hai ye bhi.....
आमतौर पर
जवाब देंहटाएंकहते हैं उसे
समझौता
और लोगों को स्वीकार्य हैं
समझौते
समझौते गर स्वीकार्य न होते तो क्यूँ अस्तित्व की सम्भावना पर ही प्रश्न खड़ा होता !!