सोमवार, 6 सितंबर 2010

मन्नत

माँ ने
माँगी थी
ए़क मन्नत,
हुआ मेरा
इस खूबसूरत दुनिया से
परिचय

उसी की मन्नतों ने
शायद
बचाया मुझे
चेचक, हैजे
और ना जाने किन किन
रोग व्याधियों
और कुपोषण से

कहीं भी
आँचल पसार लेती थी
किसी से भी
मांग लेती थी
दुआ
माँ जो थी
वह

ए़क मन्नत
मांगी थी
पिता ने ,
हुआ मेरा
एस खूबसूरत दुनिया से
साक्षात्कार

शायद
उन्हीं की मन्नतों से
नदी
पहाड़
रेगिस्तान
सागर पार करने का
आया हौसला

अंतिम सांस तक
ना नहीं कहने वाली
हिम्मत की
मन्नत मांगी थी
उन्होंने

पेड़
पौधे
मंदिर
मजार
कहीं भी
गमछा बिछा
मांग लेते थे
मेरे लिए
थोड़ी उम्र
थोड़ा बल
थोड़ा हौसला
और
थोड़ी आदमियत

ए़क मन्नत
मांग रही तो
तुम
इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में
बनाने को मेरी
नयी पहचान
भीड़ से
करने को अलग
ए़क चेहरा
ए़क व्यक्तित्व
ए़क मानव
ए़क पुरुष
अपने मन जैसा

तुम भी
कहीं भी
फैला लेती हो
दुपट्टा
सूरज
चाँद
मंदिर
मस्जिद
गुरुद्वारा
यहाँ तक कि
तुलसी के आगे भी
बिल्कुल
माँ की तरह सौम्य हो
पिता की तरह दृढ हो

कहो ना
क्या नाम दूं
तुम्हें !

20 टिप्‍पणियां:

  1. कहो ना
    क्या नाम दूं
    तुम्हे !
    Kuchh rishton ko naam naam naa do! Wo hamesha taze rahenge!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत उम्दा रचना

    ना नहीं कहने वाले
    हिम्मत की

    इसे

    ना नहीं कहने वाली
    हिम्मत की

    कहते तो बेहतर रहेगा.

    जवाब देंहटाएं
  3. शायद
    उन्ही के मन्नतों से
    नदी
    पहाड़
    रेगिस्तान
    सागर पर करने का
    आया हौसला
    shayad ? maa kee unhin mannaton ka ye hausla hai , jo yaadon ki syaahi ban kalam se utraa hai - bahut badhiyaa

    जवाब देंहटाएं
  4. जीवन साथी!
    बेहद संवेदनशील रचना।

    हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।

    हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन हमारा,
    सबकी मन्नतों से प्यारा,
    दुलारा,
    सहारा।

    जवाब देंहटाएं
  6. कहो ना
    क्या नाम दूं
    तुम्हें !

    "मेरा अपना" से बढकर क्या नाम दिया जा सकता है………………हो भी हमारे अपने होते हैं उनके ह्र्दय से हमेशा दुआयें ही निकलती हैं और हर परिस्थिति से लड्ने के लिये मन्नत ही करते हैं……………फिर उन्हें कोई और सम्बोधन कैसे दे सकते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह... ! माता-पिता और सहचरी....... ! कविता में संबंधो का नया आयाम दिया है आपने !! या यूँ कहें कि सहचरी की आदि परिभाषा "कार्येषु दासी कर्मेषु मंत्री...." को और विस्तार दिया है. बहुत सुन्दर लेख ! मुझे कभी-कभी बहुत आश्चर्य होता है कि कैसे आप बोल-चाल के छोटे-छोटे शब्दों से इतनी गुरुतर महत्व की कविता गढ़ लेते हैं..... किन्तु अंततः साधुवाद !!!

    जवाब देंहटाएं
  8. Maa to maa hai...par kuchh gumnaam rishte bhi kar guzarte hain,jinhen koyi naam nahi diya ja sakta!

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर भाव से रची-बसी कविता में हम कई मन्नतों के बीच से गुज़रते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर भाव ...हर माँ -बाप बच्चों के लिए मन्नत मांगते हैं और हर भारतीय नारी अपने पति के लिए ...पर कब कौन इतना सोचता है ? ..यहाँ यह पढ़ना अच्छा लगा ..

    जवाब देंहटाएं
  11. शायद
    उन्हीं की मन्नतों से
    नदी
    पहाड़
    रेगिस्तान
    सागर पार करने का
    आया हौसला

    Its an emotional creation, very nice..

    जवाब देंहटाएं
  12. "कहो ना
    क्या नाम दूं
    तुम्हें !"
    "प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो"
    कुछ रिश्तों में नाम की नहीं सिर्फ समर्पण और मन की आँखों से देखने की जरुरत होती है

    जवाब देंहटाएं
  13. hamdam.... kaho na kya nam du tumhe
    itne samrpan ke bad kisi nam ki jaroorat hi kaha rah jati hai...bas ek ehsas....
    bahut khoobsoorat ehsas...

    जवाब देंहटाएं