बुधवार, 15 सितंबर 2010

प्रेम की तीन क्षणिकाएं

जल

सुना है
बहुत कमी होने वाली है
जल की
आने वाले समय में
सो
सँभाल के रखना
अपनी आँखों का पानी
नहीं बहाना उसे
मुझ पर

मिटटी

सुना है
मिटटी
उपजाऊ नहीं रह जायेगी
आने वाले समय में
सो
ए़क बीज रख लो
अपने भीतर
ताकि
अंकुरित हो सके
नया जीवन

वायु

सुना
है
वायु
नहीं रह जाएगी
सांस लेने के लायक
सो
भर लो मेरी भी साँसे
अपने भीतर
ताकि
संचारित रहो तुम
चिरंतन तक

16 टिप्‍पणियां:

  1. सुना है
    मिटटी
    उपजाऊ नहीं रह जायेगी
    आने वाले समय में
    सो
    ए़क बीज रख लो
    अपने भीतर
    ताकि
    अंकुरित हो सके
    नया जीवन
    arun ji..kya baat hai :)

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  2. कविता का ये अंदाज भी अच्छा है. प्रेम भी जारी रहे. और चीजें भी ख़तम हो जाए.तो डर नहीं. इसे कहते हैं पानी आने से पहले पाल बांधना

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  3. पहली बार आई हूं यहां...अच्छा लगा..ऩई सोच है..पानी और आंसुओं पर..

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  4. पांच तत्वों में से दो कहाँ रह गए ?
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .शेष दो पर भी लिखो भाई .

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  5. achchi abhivyakti, achchi kavita
    jal, mitti or vayu...
    aankh ka paani, paer ki mitti, or vicharon ki vayu...
    arun ji achcha laga....

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  6. तीनो रचनायें जीवन बोध कराती हैं मगर गुप्त जी ने सही कहा है कि बाकि दो पर भी लिखिये………॥पंच तत्व पूरे हो जायेंगे।

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  7. this is brilliant, time is moving fast and as we are progressing ironically losings the purity of heart and on top of that polluting nature as well which is sad...

    hats off to you for wonderful composition...

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  8. बहुत खूबसूरत ... जल, मिट्टी और वायु का जवाब नही ....

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  9. गजब का शब्द सन्योजन है… एक सामयिक मुद्दे को जैसे व्यक्तिगत अनुभूति के साथ ब्लेंड किए हैं आप ऊ आपका इस बिधा पर महारत बतलाता है... तीनों क्षणिकाएँ बेजोड़ हैं!!

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  10. ए़क बीज रख लो
    अपने भीतर
    ताकि
    अंकुरित हो सके
    नया जीवनbahut sunder abhivyakti teeno tatvo ke sath.hrydaysparshi.....

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