फूल को
देखा है कभी
लगते हैं
कितने प्रिय
कितने मोहक
और
अपनी सुगंध से
सुवासित कर देते हैं
परिवेश
लेकिन प्रायः
महसूस नहीं किया होगा
डाली से टूटने का
उसका दर्द
उसके पंखुडियो के
असमय बिखर जाने की वेदना से
परिचित नहीं होगी तुम
फूल हूँ मैं
इसमें क्या कर सकती हो
तुम भी
देखा है कभी
लगते हैं
कितने प्रिय
कितने मोहक
और
अपनी सुगंध से
सुवासित कर देते हैं
परिवेश
खुशबूपसर जाती हैवातावरण मेंमनोहारी हो जाते हैं दृश्य
मन महक जाता हैफूलों कापा कर सानिध्य
लेकिन प्रायः
महसूस नहीं किया होगा
डाली से टूटने का
उसका दर्द
उसके पंखुडियो के
असमय बिखर जाने की वेदना से
परिचित नहीं होगी तुम
फूल हैमेरा प्रेमजिसे भय हैतुमसे विस्थापन का,तुम्हारी डाली सेविच्छेदन काअसमयकुम्भला जाने का
फूल हूँ मैं
इसमें क्या कर सकती हो
तुम भी