शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

रामचरित्तर की चाय दुकान

रोटी से
जो निकल पाता बाहर
घूम आता देश भर
देखता
कैसी है आज
अपने रामचरित्तर की चाय दुकान

हाँ
रामचरित्तर की चाय दुकान
आपके शहर में होगी
किसी और नाम से
लेकिन एक ही तरह की
हवा बहती होगी वहां
कुछ गंभीर पढ़ाकू आते होंगे
कुछ आवारा फ़ालतू आशिक मिजाज लोग आते होंगे
आते होंगे कुछ बूढ़े टाइम पास के लिए
अलग अलग समय पर
और पीते होंगे
कभी एक , कभी एक बट्टा दो रामप्यारी चाय

एक देश है तो
रामचरित्तर की दुकान भी
एक जैसी ही होगी
सुबह जो चढ़ती होगी
उसके अलमुनियम की हांडी और केतली
उतरती होगी
कस्बे के सोने के साथ ही

कई आईएएस, डाक्टर, इंजीनियर बने होंगे
यहाँ की बहसबाजी से,
 कुछ प्रोफ़ेसर, लेक्चरर निकले होंगे
गंभीर गुफ्त्गुओं से,
कई आवारा किस्म के अड्डा ज़माने वाले लफंदर
आई पी एस और इन्स्पेक्टर हैं ,
देश के कोने कोने में
और बचे खुचे लोग ऐसे भी हैं
जो हैं बैंक अधिकारी,
यही नहीं
कुछ कवि और कथाकार भी
जन्मे हैं
कुछ नेता भी बने हैं
रामचरित्तर के 'रामप्यारी' चाय पीकर

कितनी ही सफल असफल प्रेम कथाएं
भाप बनकर उड़ गई हैं
रामचरित्तर की चाय के साथ
वहां की
तीन टांग पर खड़ी बेंच पर
खुदे हैं कितने ही जोड़ो के नाम
जिनके बच्चे आज
हो गए होंगे जवान

कितने ही दंगे और फसाद
झेले हैं इस दुकान ने
और कस्बे की सबसे महफूज
जगह थी ये १९८४, दिसंबर ९२ में
सभी कौमों के लिए
कितने ही नगर निगम के आदेशों पर
नमकीन बाँध दिए
इस दुकान ने

सुना है
कोई रीटेल ऍफ़ डी आई नीति
बना रही है सरकार
और
रामचरित्तर की दुकान
खतरे में है
हर शहर में
आपके भी शहर में
अपनी पहचान के साथ

22 टिप्‍पणियां:

  1. रामचरित्तर की दुकान के बारे में इतना नहीं सोचा था.. सोचने को मजबूर करने के लिए धन्यवाद..

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  2. आपके सूक्ष्म दृष्टिकोण को सलाम्……………बडी गहरी सोच का परिचायक है जहाँ से हर कोई रोज गुजरता तो है मगर उस दिशा मे सोच नही पाता…………………बेहद खूबसूरती से इस जज़्बे को उकेरा है।

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  3. भाई छा गए।
    रामचरित्तर हमें भा गए
    उनके साथ पढे थे जो
    पाठ, सारे याद आ गए!

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  4. "रामचरित्तर की चाय की दुकान" न जाने कितनी घटनाओं को अपने भीतर संजोकर बैठी है ! अत्यंत सूक्ष्म निरीक्षण से लिखी गयी ये कविता सामान्य से समरसता का दस्तावेज है...

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  5. बहुत गहरे भावों से भरी कविता. दिल को छू गयी......

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  6. रामचरित्तर की चाय की दुकान तो हमारे मोहल्ले के नुक्कड़ वाली ही लगी...



    या देवी सर्व भूतेषु सर्व रूपेण संस्थिता |
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ||

    -नव-रात्रि पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं-

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  7. मुझे तो इलाहबाद के युनिवेर्सिती रोड के सुभाष चाय वाले की याद हो आयी

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  8. ramcharittar ki dukan....jo kho gayee thi kahi atit ki dhundh me,,,aaj saf dikhai de rahi hai....aur iski mahatta bhi jo kisi niyam kanoon se na kam hogi na khatm,ye bharat hai....yaha jo cheej bad bade mall me nahi milti vo kinare ki parchun ki dukan par mil jati hai.....kabhi kisi mall par 'foolkhar'dhundh kar bataiye...

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  9. कोई भी निति चल जाए लेकिन राम चरित की चाय की दूकान फिर भी किसी न किसी कोने पे मिल ही जायेगी.

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  10. kiten aise log hai jinki roji roti yahi chai ki dukan hai..par na jane kab ye rojgar chhin jaye nahi jante...

    achchhi lagi ye

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  11. नुक्कड़ पर बसी ऐसे रामचरित्तर की दुकाने जिन्दगी की जद्दोजहद करते कितने मुसाफिरों का ठिकाना होती है ...
    अच्छी कविता ...!

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  12. सरकार वो सब कुछ ख़त्म करना चाहती है तो छोटी छोटी यादों से जुड़ी चीज़ है ... लाजवाब लिखा है ...

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  13. bahut baareeki se aapne raamchaaritr kee dukaan ko dil me basaa ke panno me ukera hai ..bahut khoob ..aur kai muddey bhi uthey isis dukaan me chaay ke bahaane ... bahut khoob

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  14. एक देश है तो
    रामचरित्तर की दुकान भी
    एक जैसी ही होगी
    सुबह जो चढ़ती होगी
    उसके अलमुनियम की हांडी और केतली
    उतरती होगी
    कस्बे के सोने के साथ ही
    बहुत स्वाभाविक खाका खींचा है अरुण जी आपने. सार्थक कविता.

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  15. बाकी सब तो ठीक है पर आपकी कविता का स्‍वाद रामचरित्‍तर की चाय का मुकाबला नहीं कर पाया। कविता को और उबालने की जरूरत थी। उसका रंग फीका रह गया है,दूध ज्‍यादा हो गया है।

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  16. achhi lagi aapki kavita ..... aur ramcharittar ki dukan to sachmuch aisi hi hoti hai ji.....

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  17. मेरे मुहल्ले में भी है ऐसी ही रामचरित्तर की दुकान

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  18. अरुण जी आपकी कविता का विषय अच्छा है. हर कही छोटी-छोटी चाय की दुकाने, नुक्कड़ और मोहल्लों के पाटे..गंभीर विषयों की चर्चा का मंच रहे हैं..जो शहर की गलियों से लेकर संसद के गलियारों से होकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों तक के विषय समेटे रहे हैं. साथ ही सांस्कृतिक धरोहर भी सहेजे रहे हैं... ! आपने इस विषय पर बहुत ही अच्छा लिखा है..बधाई !

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  19. जी हाँ!
    न जाने कित्ने रामचर्त्तर की इस प्रकार की दूकाने पूरे देश में चल रही हैं! सभी का हाल इसी तरह का है!
    आपने बहुत सुन्दर चित्रगीत लिखा है!
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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