शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

पृथ्वी के गर्भ में






इन दिनों
पृथ्वी पर नहीं
इसके गर्भ में होने सा
लग रहा है मनु को 



कोई द्वन्द है
जिसका लावा
पिघला रहा है 
उसके अंतस के इस्पात को
और उसका पौरुष 
पिघल पिघल कर 
रह जा रहा है 

नहीं हो रहा कोई 
विस्फोट
ना ही कोई ज्वालामुखी 
फूट रहा है भीतर से
न ही हो रहा कोई सृजन
समस्त उथल पुथल 
भीतर ही भीतर 
हो रहे हैं 
मनु के 

न जाने 
वह कौन सी
वर्जना है 
जिसका कोलाहल 
इतना मौन है कि
वर्जना का मौन बल
हो गया है 
गुरुत्वाकर्षण बल सा 
और खींचे ही जा रहा है
अपने गर्भ में भीतर 
मनु को

कई बार
फेक दिया जाता है
कई कई प्रकाश वर्ष दूर
आकाशगंगाओं के प्रकाश पुंज के बीच
बल हीन, 
विषय हीन
भार हीन सा
किसी अपरिचित अंतरिक्ष में
पाता है स्वयं को
मनु

पृथ्वी के गर्भ में
संघर्षरत मनु
नहीं कर रहा कोई
प्रार्थना, 
याचना , 
कामना; 
किन्तु
'हे मनु !
लौट आओ मेरे पास '
सुनना चाहता है 
श्रद्धा के मुख से 
लौटने के लिए नहीं
बल्कि 
अपने भीतर के 
"मैं" की जीत के लिए 

पृथ्वी के गर्भ में
युद्धरत है मनु
स्वयं से 

16 टिप्‍पणियां:

  1. पृथ्वी के गर्भ में
    युद्धरत है मनु
    स्वयं से
    जो स्वयं से युद्धरत है वही तो 'मनु' है

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  2. बहुत अर्थपूर्ण रचना... विज्ञान के कई सारे शब्द भी आपने शामिल किये है.....
    सन्देश भी सुंदर है....

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  3. कितनों के पाप और कितनी इच्छायें लावा बन पृथ्वी के गर्भ में बह रही हैं।

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  4. पृथ्वी के गर्भ में
    संघर्षरत मनु
    नहीं कर रहा कोई
    प्रार्थना,
    याचना ,
    कामना;
    किन्तु
    'हे मनु !
    लौट आओ मेरे पास '
    सुनना चाहता है
    श्रद्धा के मुख से
    लौटने के लिए नहीं
    बल्कि
    अपने भीतर के
    "मैं" की जीत के लिए.... srishti ke garbh se uthte sashakt vichaar aur unki pukaar

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  5. अरुण जी... आज तो हर कोई स्वयम को इन परिस्थितियों से घिरा पाता है.. बहुत सुंदर!!

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  6. नहीं हो रहा कोई
    विस्फोट
    ना ही कोई ज्वालामुखी
    फूट रहा है भीतर से
    न ही हो रहा कोई सृजन
    समस्त उथल पुथल
    भीतर ही भीतर
    हो रहे हैं
    मनु के
    **
    अभी तक ठहरा नहीं है ये उथल-पुथल
    जब तब शह या मात ना हो
    तब तक मनु टूट कर बिखरे
    मनुत्व के अवयवों को
    स्वयं में ही खोजता रहेगा...
    बहुत ही सुन्दर और यथार्थवादी काव्य का परिचय अरुण जी की लेखनी से हम तक पहुंचा जिसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं अरुण जी..आभार !!

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  7. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  8. मनु के माध्यम से आपने हर इंसान के भीतर छुपे द्वंद का चित्रण किया है…………न जाने किस खोज मे भटक रहा है मगर अन्तर्द्वंद उसे सावधान भी करता है और एक अन्दर की खोज के लिये प्रेरित भी और जब तक इस "मै" की खोज पूरी नही हो जाती भट्काव उसे और उसके जीवन को बोझिल करता रहेगा……………बेहतरीन प्रस्तुति।

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  9. अपने भीतर के
    मैं की जीत के लिए

    बहुत ही प्रभावशाली रचना,
    विज्ञान के तथ्यों का प्रतीकों के रूप में बढ़िया प्रयोग।

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  10. बहुत ही प्रभावशाली रचना,
    लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...

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  11. बहुत गंभीर विषय की सरल प्रस्‍तुति। आनंद आ गया।

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  12. अरुण जी बहुत गंभीर विषय और गंभीर बातें कह गए आप समझने में समय लगेगा

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  13. गंभीर चिंतन....सुन्दर काव्य....

    वाह !!!!

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  14. आपके काव्य में गाम्भीर्य का दर्शन करके आज तो जा रहा हूँ। अब फुर्सत में फिर आऊँगा...वादा, मेरे भाई!

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  15. एक गम्भीर रचना, मन प्रसन्न हुआ आपके लेखन की इस गम्भीरता पर...बधाई!

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