शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

समय से परे

घड़ी से बंधा नहीं होता है
समय
फिर भी
बांधे होते हैं हम
अपनी कलाई पर समय

समय
साथ नहीं चलता
कलाई पर बंधे होने के वाबजूद
और हमें अपने साथ
लेकर नहीं चलता

मैंने
बाँध रखी है
एक आभासी  घड़ी
अपनी कलाई पर
जो  टिक टिक करती है
तुम्हारी धडकनों के साथ

यह समय
रंग बदल लेता है
बिल्कुल हमारे तुम्हारे
मन की तरह
और सबसे बेहतर होता है
जब यह होता है
गुलाबी

लेकिन
नहीं चल पाते
हम और तुम
साथ साथ

फिर भी
सभी समय से परे है
हमारा तुम्हारा
सम्बन्ध !

20 टिप्‍पणियां:

  1. फिर भी
    सभी समय से परे है
    हमारा तुम्हारा
    सम्बन्ध !
    और फिर सात्विक साथ समय.. देश से परे जो होता है

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  2. फिर भी
    सभी समय से परे है
    हमारा तुम्हारा
    सम्बन्ध !
    समय की सुंदर विवेचना अच्छी लगी

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  3. अर्थ सघन यह कविता पढकर आध्यात्मिक अनुभूति हुई!

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  4. फिर भी
    सभी समय से परे है
    हमारा तुम्हारा
    सम्बन्ध !
    Wah! Ye bahut khoob kaha!

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  5. अरुण जी! एक ऐनेलॉग बिम्ब से एक डिजिटल संबंध को बेहतरीन रूप से परिभाषित करती है यह रचना. एक समयातीत संबंध की व्याख्या जहाँ दोनों साथ साथ नहीं चल पाते मगर संबंधों को समय से परे बताते हैं. याद दिलाती है यह रचना बासु भट्टाचार्य्य के एक संदेश की जहाँ वे संबंधों को साथ-साथ चलते-चलते से पास-पास चलते रहने तक की यात्रा के रूप में रेखांकित करते हैं!!

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  6. घड़ी से बंधा नहीं होता है
    समय
    फिर भी
    बांधे होते हैं हम
    अपनी कलाई पर समय ...

    bahut lazawab abhivyakti...

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  7. समय और सम्बन्ध को आपने सुंदर तरीके से व्याख्यायित किया .बहुत अच्छी कविता

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  8. समय की सुंदर विवेचना .....अच्छी लगी कविता

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  9. लेकिन
    नहीं चल पाते
    हम और तुम
    साथ साथ

    फिर भी
    सभी समय से परे है
    हमारा तुम्हारा
    सम्बन्ध

    संबंधों की सुन्दर अनुभूति ..

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  10. फिर भी
    सभी समय से परे है
    हमारा तुम्हारा
    सम्बन्ध
    ......
    waah !!!!!!

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  11. 6.5/10

    अलग-अलग समय की विवेचना करती उत्कृष्ट कविता
    अंतिम पंक्ति -
    "सभी समय से परे है
    हमारा तुम्हारा सम्बन्ध !"
    पेनाल्टी स्ट्रोक की तरह है जो सीधे गोल में तब्दील हो जाती है.

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  12. "सभी समय से परे है
    हमारा तुम्हारा सम्बन्ध !"
    दिल को छूती हुई पंक्तियाँ.
    बेहद सुन्दर.

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  13. अरुण जी पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ..बहुत अच्छा लगा वाकई बहुत बढ़िया लिखते है आप...शुभकामनाएँ

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  14. समय से परे और समय के साथ भी एक अनुभूती रह्ती ही है अहसासो मे और फ़िज़ाओं मे जिसे कभी कहीं कैद नही किया जा सकता……………और वो अनुभूति सम्बन्धो की होती है……………बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  15. सभी समय से परे है
    हमारा तुम्हारा संबंध...

    गूढ़ भावों से संयुक्त सुंदर रचना।

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  16. हाथ में बँधी घड़ी में बढ़ता समय और मन की गहराईयों में बसा समय का घनीभूत रूप, तारतम्य स्थापित करने में ही जीवन निकल जाता है। जीवन के इस तथ्य को उद्घोषिक करतीं, बड़ी ही सुन्दर पंक्तियाँ।

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  17. सभी समय से परे है
    हमारा तुम्हारा संबंध... bahut khoob bas ye jeevan sambandh hi har samay har utar-chadav se pare hona chahiye...bahut khoobsurat rachna...

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