हे महात्मा !
चौक चौराहों पर
करके कब्ज़ा
यदि सोच रहे तो तुम
कि
ह्रदय में वास कर रहे हो
या फिर
तुम प्रेरणा श्रोत हो
नए विश्व के
तो गलतफहमी में हो
हाँ,
सेमीनार और कांफ्रेंस के
अच्छे विषय जरुर हो
और तुम्हारी खादी
जो अब मशीनों से
जाती है बुनी
हो गई है
फैशन स्टेटमेंट
और
अपने सिद्धांतों व
आम आदमी के साथ
हाशिये पर हो
तुम
बिल्कुल सही कहा………………आज कहाँ है गांधी का अस्तित्व्…………सिर्फ़ चौराहों और दीवारों पर उसके अलावा उनके आदर्शों से किसी को कोई सरोकार नही है…………………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसच में हाशिये पर खड़ा कर दिया है, पार्टी कार्यकर्ता के रूप में।
जवाब देंहटाएंबापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंबापू! मै तेरे सिद्धान्त, दर्शन,सद्विचार को ढूंढ रहा हूँ.
सत्य अहिंसा अपरिग्रह, यम नियम सब ढूंढ रहा हूँ.
बापू! तुझको तेरे देश में, दीपक लेकर ढूंढ रहा हूँ.
कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
जेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?
गाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ... स्थिति और समय के साथ
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति...आज गाँधी जी फोटो और मूर्तियों के अलावा है कहाँ? हम सब ने उनकी शिक्षाओं को ताक पर रख दिया है...जब गाँधी जी की फोटो के नीचे ही बैठ कर भ्रस्टाचार का व्यापार होता है तो कैसे आशा करें की कोई उनकी शिक्षाओं को अपनाएगा...आभार..
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंbahut achha likha hai aapne , ek milti julti kawita meri bhi hai ,visit karen.
जवाब देंहटाएंsuch ujagar kartee abhivykti.
जवाब देंहटाएंaabhar
सार्थक लेखन के लिए आभार
ब्लॉग4वार्ता पर आपकी पोस्ट की चर्चा है।
बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
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