पहाड़ों को
सदा ही रहा है
भ्रम
आकाश को छूने का
नदियों के लौट जाने का
इसलिए रह गए हैं
पहाड़
निर्जल
अकेले .
२
पहाड़ो को
सदा ही रहा है
दर्प
अपनी ऊंचाई का
इसलिए रह गए हैं
पहाड़
छोटे
अकेले
अकेले
३
पहाड़ों को
सदा ही रहा है
अभिमान
अपने दुर्गम्य होने का
इसलिए रह गए हैं
पहाड़
पहाड़ों को
सदा ही रहा है
अभिमान
अपने दुर्गम्य होने का
इसलिए रह गए हैं
पहाड़
निर्जन
अकेले.
अकेले.
४
पहाड़
तंग आ चुके हैं
अपने अकेलेपन से
और
बन जाना चाहते हैं
पानी
हवा
सुगंधपहाड़
तंग आ चुके हैं
अपने अकेलेपन से
और
बन जाना चाहते हैं
पानी
हवा
फूल
arun jee
जवाब देंहटाएंnamaskaar !
sunder abivyakti !
sadhuwad .
saadar
सुन्दर और शानदार प्रेरक कविता...
जवाब देंहटाएंsunder bhav ukere hai aapne......
जवाब देंहटाएंपाँचों शब्द-चित्र देख लिए..
जवाब देंहटाएं--
पहाड़ पर आपकी अभिव्यक्ति बहुत खूबसूरत हैं!
shi khaa jnaab yeh klyug he yhaan hr phad ko insaan ne jit liyaa he isliyen ab phadon ko khud ko hi bdlna hogaa . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएं5.5/10
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट
पहला और आखिरी पार्ट मिलकर ही कविता मुकम्मल हो जाती है.
ख़ास तौर पर तीसरा पार्ट अनावश्यक विस्तार है.
बहुत सुन्दर बातें मन को छू गयीं.या यो कहें की अब तो पहाड़ भी समझने लगे हैं अब तो समझ जाओ संभल जाओ
जवाब देंहटाएंअच्छे चित्र खीचें हैं आपने..पहाड़ों के.
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दचित्र और भाव ..
जवाब देंहटाएंपहाड़
जवाब देंहटाएंतंग आ चुके हैं
अपने अकेलेपन से
और
बन जाना चाहते हैं
पानी
हवा
सुगंध
फूल
Bahut sundar !
बहुत सुन्दर शब्दचित्र ..प्रेरक भाव..बधाई.
जवाब देंहटाएं... बेहतरीन रचना !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंपहाड़
जवाब देंहटाएंतंग आ चुके हैं
अपने अकेलेपन से
और
बन जाना चाहते हैं
पानी
हवा
सुगंध
फूल
हाँ ठहरी हुई जिंदगी किसे भाती है.... बहुत सुंदर
अभिमान और दर्प एक तरफ और बड़प्पन दूसरी तरफ.. एक बहुत पहले पढ़ा शेर याद आ रहा हैः
जवाब देंहटाएंबुलंदी कब तलक इक शख्स के कब्ज़े में रहती है,
बड़ी ऊँची इमारत हर समय ख़तरे में रहती है.
शायद कई लोग आपकी इस कविता से सीख ले सकें!!
इतनी सुन्दर कविता पहले नहीं पढ़ी, इस विषय पर।
जवाब देंहटाएंपहाड़ को गर्व है अपने अडिग अटल अस्तित्व का , वह मौन द्रष्टा है प्रकृति के परिवर्तित रूपों का ,खुद भी विलीन होता है ,
जवाब देंहटाएंगौर से देखो उसके अन्दर वह सब है, जो बाहर से दिखता नहीं
अहंकार , अहम् , अकेलेपन से तंग आ चुके हैं पहाड़ ...
जवाब देंहटाएंऔर बन जाना चाहते हैं पानी , हवा , फूल , सुगंध ....
अच्छी कल्पना ...!
पहाड़
जवाब देंहटाएंतंग आ चुके हैं
अपने अकेलेपन से
और
बन जाना चाहते हैं
पानी
हवा
सुगंध
फूल
पहाडों के माध्यम से आपने जीवन दर्शन करा दिया है……………जो भी इनसान अभिमान के दर्प मे रहता है वो चाहे कितनी ही ऊँचाई पर पहुँच जाये कहीं ना कहीं जाकर अकेला पड ही जाता है और फिर एक वक्त आता है जब उसे भी फिर उन ही गलियों मे आना पडता है जिन्हे वो हेय समझता है……………मानव जीवन की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंकाश् आपके माध्यम से व्यक्त पहाड़ों की इच्छा पूर्ण हो सके।
जवाब देंहटाएंपहाड़ों ने यूँ तो सताया हमें,
अकेले हुए तो बुलाया हमें।
पहाड़ों का अस्तित्व कुछ भी नहीं
अगर छोड़ सब जायें उसकी ज़मीं।
बहुत खूब ... पहाड़ों में भी जैसे आत्मा का वास कर दिया है आपकी लेखनी में ... ज़ज्बात भर दिए हैं ...
जवाब देंहटाएं