१.
भीड़ से
अनंत प्रकाशवर्ष दूर
सृजित निर्जन मन पर
वास
हे मानव !
भीड़ से
अनंत प्रकाशवर्ष दूर
सृजित निर्जन मन पर
वास
हे मानव !
यह निर्लज्जता है
या
तुम्हारा अज्ञातवास !
२.
इच्छा (एं)
अतृप्त यात्रा पर है
छोड़ सभी
अतृप्त यात्रा पर है
छोड़ सभी
भाव
वेदनाएं
वेदनाएं
साथ लिए
थोड़ी स्मृति
थोड़ी स्मृति
थोडा समय
थोडा "स्पेस",
हे इच्छा(एं)!थोडा "स्पेस",
यह अतृप्ता है
या
तुम्हारा अज्ञातवास !
३
रंग
अब रंगमय नहीं रहे
बना रहे हैं
भयभीत कोलाज
३
रंग
अब रंगमय नहीं रहे
बना रहे हैं
भयभीत कोलाज
उनका शोर
पथरा रहा है आंखों को,
ढूंढ रहे हैं बुनियादी रंग
पथरा रहा है आंखों को,
ढूंढ रहे हैं बुनियादी रंग
अपना अस्तित्व
हे रंग !
यह विस्मयकारी कोलाज
है नई दुनिया हे रंग !
यह विस्मयकारी कोलाज
या
तुम्हारा अज्ञातवास !
हे मानव !
जवाब देंहटाएंयह निर्लज्जता है
या
तुम्हारा अज्ञातवास !
अरुण जी
नमस्कार !
ये पंक्तिया अच्छी लगी , सुंदर लगी आप कि छोटी छोटी कविताए ,
साधुवाद !
मन की अतृप्त इच्छाओं को पाने और ना पाने के बीच होते द्वंद से उपजी अशांति को दुनिया के मायाजाल मे पाने की लालसा कब इंसान को अपने जाल मे फ़ंसा लेती है पता नही चलता और जब कामनाओं की पूर्ति नही होती तो मानव मन अपने ही भीतर उन्हे ढूँढने लगता है……………एक बेह्द गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुत रचना मुझे आपकी अभी तक प्रकाशित रचनाओं में सर्वाधिक प्रबुद्ध, चिंतनशील, एवं सुसंस्कृत लगी. प्रवाह भी अविरल है. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंmaulikta liye anupam kriti!
जवाब देंहटाएं... बहुत सुन्दर ... बेहतरीन !!!
जवाब देंहटाएंसभी प्रश्नों का जबाब अनुत्तरित ही रहेगा और आपको ही खोजना होगा...बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंरंग
जवाब देंहटाएंअब रंगमय नहीं रहे
बना रहे हैं
भयभीत कोलाज
आपके शब्दचित्रो का जवाब नही
प्रियवर अरुण चन्द्र राय जी!
जवाब देंहटाएं--
जिसके नाम में रवि और शशि दोनों हों
उसके शब्द-चित्रों का क्या कहना!
--
तीनो ही शब्दचित्र अभिनव हैं!
बधाई।
जवाब देंहटाएंआज तो एक नया ही कोलाज उभर कर सामने आया है लाजवाब
जवाब देंहटाएंहमेशा ही नए विषयों पर आपकी रचनाये पढने को मिलती है
जवाब देंहटाएं..............कमाल की लेखनी है
रंग
जवाब देंहटाएंअब रंगमय नहीं रहे
बना रहे हैं
भयभीत कोलाज
उनका शोर
पथरा रहा है आंखों को,
ढूंढ रहे हैं बुनियादी रंग
अपना अस्तिव ... bahut hi utkrisht rachna
इच्छा (एं)
जवाब देंहटाएंअतृप्त यात्रा पर है
छोड़ सभी
भाव
वेदनाएं
साथ लिए...
bahut sundar prastuti
कविताओं के शब्द कम हैं पर अर्थ बहुत गहरे ..... आभार
जवाब देंहटाएंएक अच्छी रचना जो सोचने पर मज़बूर करती है।
जवाब देंहटाएंनिर्लज्जता तो अज्ञातवास से बाहर लाती है, यह तो लाज है जो अज्ञातवास में रहने को विवश करती है।
जवाब देंहटाएंअरुण जी!आज माफ करें.. इस प्र्स्तुति के लिये मेरी कोई भी टिप्पणी उपयुक्त नहीं.. शब्द चुक गए हैं!!आपकी तमाम रचनाओं में बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंसटीक सवाल हैं क्या इतना आसान है इनके जवाब ढूंढ पाना.
जवाब देंहटाएंअपने अंदर बहुत दूर तक गहरे में यात्रा करनी पड़ेगी और रंगों, इच्छाओं और भीड़ से लंबे अंतराल तक अज्ञातवास लेना ही पड़ेगा.
सुंदर सशक्त लेखन.
गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंभीड़ से दूर निर्जन मन पर वास...
जवाब देंहटाएंनिर्लज्जता या अज्ञातवास ...
इच्छाओं का , रंगों का ... अज्ञातवास ..
अनूठी प्रस्तुति ...!
इच्छा (एं)
जवाब देंहटाएंअतृप्त यात्रा पर है
छोड़ सभी
भाव ...
ये अनत की यात्रा है जो शायद मृत्यु के साथ ख़त्म हो ....
बहुत प्रभावी है सब क्षणिकाएँ ....