बहुत दिनों बाद
कल रात मुझे आयी नींद
और नींद में देखा सपना
सपना भी अजीब था
सपने में देखी नदी
नदी पर देखा बाँध
देखा बहते पानी को ठहरा
नदी की प्रकृति के बिल्कुल विपरीत
मैं तो डर गया था
रुकी नदी को देख कर
सपने में देखा कई लोग
हँसते, हंस कर लोट-पोत होते
ठोकते एक दूसरे की पीठ
रुकी हुई नदी के तट पर जश्न मानते लोग
सपने में देखा सांप
काला और मोटा सांप
रुकी नदी के तल में पलता यह सांप
हँसते हुए लोगों ने पाल रखा है यह सांप
मैं तो डर गया
मोटे और काले सांप को देख कर
प्रिये
मैं तोड़ रहा था यह बाँध
खोल रहा था नदी का प्रवाह
मारना चाहता था काले और मोटे सांप को
ताकिनदी रुके नहीं
नदी बहे , नदी हँसे
नदी हँसे ए़क पूर्ण और उन्मुक्त हंसी
क्योंकि रुकना नदी की प्रकृति नहीं
प्रिये
मैं अकेला था
तोड़ते बाँध
मारते काले और मोटे सांप को
नदी भी मौन थी
लगता है उसकी मौन स्वीकृति थी
प्रकृति के विपरीत
मैं तो डर गया था
जवाब देंहटाएंरुकी नदी को देख कर
सपने में देखा कई लोग
हँसते, हंस कर लोट-पोत होते
ठोकते एक दूसरे की पीठ
रुकी हुई नदी के तट पर जश्न मानते लोग
गम्भीर प्रकृति चिन्तन करती सार्थक कविता.
wah arun ji gajab kar diya sapne me bhi....
जवाब देंहटाएंKavita padhte,padhte raungate khade ho gaye!
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव जगाती कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से रचना के माध्यम से प्रेरणा दी है .
सुन्दर प्रवाहमान रचना ! आपकी लेखनी भी निरंतर चलती रहे यही कामना है !
जीवन चलने का नाम है और चलते रहना ही प्रकृति है इंसान की मगर उसमे जो कुंठाओं कटुताओ के साँप इंसान ने पाल रखे हैं वो उसे हमेशा आगे बढने से रोकते हैं…………………लेकिन ये तो इंसानी फ़ितरत नही उसे तो हर बाँध तोड्ना होगा और कटुता वैमनस्य से ऊपर उठना होगा तभी उसका जीवन सार्थक होगा………………इंसानी जीवन को प्रकृति मे माध्यम से जिस प्रकार आपने उकेरा है वो काबिल-ए-तारीफ़ है………………बेहद सुन्दर बिम्ब प्रयोग्।
जवाब देंहटाएंaapne shi likha he lekin hm thodaa asmnjs me isliyen hen kyonki hmne sukhi ndiyaan, or ruki hui ndiya bhi dekhi hen . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएं... sundar rachanaa !
जवाब देंहटाएंमजबूरी को यही माना जा रहा है कि लगता है उसकी मौन स्वीकृति थी
जवाब देंहटाएंप्रकृति के विपरीत....
-बहुत उम्दा रचना.
विसंगतियों एवं कृत्रिमता पर अच्छा व्यंग्य. प्रतीक और विम्बों से लग रहा है कि अज्ञेय का जमाना फिर लौट आया है ! सुन्दर कविता ! धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंnadi ka ruka hua pravah ....uski vivashta ko kavi ne sundarta se kaha hai....
जवाब देंहटाएंapni prakriti ke anuroop hi nadi bahegi!!!
shubhkamnayen!
अरुन बाबू! आज त न जाने केतना नदी का प्रवाह रुका हुआ है अऊर नदी का मौन स्वीकृति भी है ई रुकावट के लिए! चारों ओर हँसता है आदमी, उसपर जो बेकार कोसिस करता है ई बाँध को तोड़ने का. एक बार स्वर का सरिता बहाकर देखिए इस जगत में, न जाने कहाँ कहाँ से मोटा मोटा साँप आचार संहिता का दुहाई देने के लिए आ जाएगा अऊर बंद कर देगा स्वर सरिता को. दुष्यंत जी याद आ गए, आपका कविता सेः
जवाब देंहटाएंहर तरफ ऐतराज़ होता है,
मैं अगर रोशनी में आता हूँ.
bahut vicharsheel abhivyakti...bahut sundar..
जवाब देंहटाएंकविता को जुझारू व्यक्तित्व देख रहा हूँ, उत्कृष्ट।
जवाब देंहटाएंकविता में बिल्कुल नए बिम्बों का प्रयोग किया है आपने...बधाई।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना ....
जवाब देंहटाएंभाई हमारा तो काम ही बॉंध बनाना है, अब आप बॉंध में सेधमारी करें ये बात है तो परेशान करने वाली; लेकिन कविता है; न जाने किन शब्दों में क्या भाव छुपा हो, बह जाने देते हैं।
जवाब देंहटाएंक़तरे में दरिया होता है
जवाब देंहटाएंदरिया भी प्यासा होता है
मैं होता हूं वो होता है
बाक़ी सब धोखा होता है
दरिया कब रुका है
जवाब देंहटाएंअपनी मनमर्जी बहा है
बाँध बना भी दिया गर
फिर और तेज़ी से बहा है .
खूबसूरत अभिव्यक्ति
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति .....धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं4/10
जवाब देंहटाएंभाव अच्छे हैं किन्तु कविता नहीं है
bahut hi achhi rachna ... arthpurn sanket hain
जवाब देंहटाएंवाह वाह ..हम तो इस अविरल प्रवाह पर बहते चले गए ...आनंदित होकर ..बहुत ही अनुपम पंक्तियां हैं
जवाब देंहटाएंनदी भले ही रुक गई हो पर भावनाओं का अविरल प्रवाह तो जारी है
जवाब देंहटाएंनदी के बहाने जीवन के अनेक पहलुओं को बडी खूबसूरती से आपने कविता में उकेर दिया है।
जवाब देंहटाएं................
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
बहुत ही सुंदर कविता .....
जवाब देंहटाएंacchee abhivykti...
जवाब देंहटाएंताकि नदी रुके नहीं
जवाब देंहटाएंनदी बहे , नदी हँसे
बेहतरीन सोच की रचना ...
बाँध को तोड़ने से पहले काले नागों को काबू में करना होगा.
शानदार कविता और सार्थक सोच...बधाई.
जवाब देंहटाएं________________
'शब्द-सृजन की ओर' पर आज निराला जी की पुण्यतिथि पर स्मरण.
कुछ नहीं, बस शुभकामनाएं देने आया हूं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोsस्तु ते॥
महाअष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!