हाथ में
नहीं दिख रहा
कोई हथियार
फिर भी
हो रहा है वार पर वार
हो कर सवार
लोकतंत्र की छाती
मरा नहीं
दिख रहा कोई
सरे बाजार
फिर भी
कर रहे हैं
हर चौक चौराहे
भरपूर विलाप
पीट पीट कर
लोकतंत्र की छाती
ह्रदय में
भरी पडी है
मिथ्या ही मिथ्या
फिर भी
दिखा रहे हैं
जन गण मन को
चीर चीर कर
लोकतंत्र की छाती
बनाती है राह
संसद तक की
संसाधनों तक की
लोकतंत्र की छाती
बनाती है राह
संसद तक की
संसाधनों तक की
लोकतंत्र की छाती
3/10
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास
आज की हालात को बयान करती इस रचना पर अर्ज़ है
जवाब देंहटाएंनिर्लज्जता का काम मगर आन बान से
खिलबाड़ कर रहे हैं, लोग संविधान से।
डलवा रहे हैं वोट को डंडे के चिह्न पर
लड़ता है कौन यहां इलेक्शन निशान से।
... bahut sundar !
जवाब देंहटाएंआज के हालात का बेहतरीन चित्रण किया है………………सारे दर्द उभर कर आये हैं।
जवाब देंहटाएंअब तो यही चिन्ह ही हथियार है, लोकतन्त्र का।
जवाब देंहटाएंsahi likha apne arun jee yehe hoo raha hai aaj kal.
जवाब देंहटाएंमिथ्या ही मिथ्या
जवाब देंहटाएं............
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बहुत सही और सामयिक
जवाब देंहटाएं.... प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंsamyik rachana..
जवाब देंहटाएंबनाती है राह
जवाब देंहटाएंसंसद तक की
संसाधनों तक की
लोकतंत्र की छाती
सचमुच ... इसीलिए तो इसे रौदने में लगे कुछ देशद्रोही......बहुत अच्छा लिखा आपने...
namskaar
जवाब देंहटाएं!
aaj kayayharth ye ho bayya karta hai .
saadar
अच्छा सधा हुआ कटाक्ष
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंबेटी .......प्यारी सी धुन