बाज़ार की चकाचौंध
मीडिया की बाढ़ के बीच
निकलते हैं
छोटे अखबार
देश भर से
स्थानीय भाषाओँ में
पूरी प्रतिबद्धता के साथ
या कहिये
अपेक्षाकृत अधिक प्रतिबद्धता के साथ
इनके मार्केटिंग एक्जक्यूटिव
होते हैं कस्बाई विश्वविद्यालयों से
शुरू हुए नए जनसंचार पाठ्यक्रम में
मीडिया की रणनीति और राजनीति की शिक्षा लिए
दुनिया खरीद लेने /या बेच देने का जज्बा लिए
लेते हैं लोहा बाज़ार से
चेहरे पर सुदूर अवस्थित किसी स्टील प्लांट से
निकलने वाले इस्पात का तेज लिए
इनके भीतर होती है
अपरिमित ऊर्जा/सम्पदा
जैसे धरती के गर्भ में हैं
प्रचुर संसाधन
अयस्कों की भांति होते हैं
ये अनगढ़
जैसे जैसे
निखरती है इनकी प्रतिभा
मीडिया बाज़ार की
नज़र पड़ती हैं इनपर
और हैक कर लिए जाते हैं
बड़े अखबारों के
नए संस्करण के लिए
ठीक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के
एम ओ यू के तर्ज़ पर
संसाधनों के इष्टतम उपयोग
और निवेश के नाम पर
छोटे अखबार के
मार्केटिंग एक्जक्यूटिव
ब्रांड बन कर उभरते हैं
और अस्त हो जाते हैं
रौशनी के अँधेरे में
मीडिया हाइरार्की की सीढी पर
लुढ़का दिए जाते हैं
थोड़े दिनों बाद
जारी रहती है
छोटे अखबार की प्रतिबद्धता
अपेक्षाकृत अधिक प्रतिबद्धता
साथ ही, नए मार्केटिंग एक्जक्यूटिव की खोज
सार्थक रचना, जारी रहे प्रतिबद्धता !
जवाब देंहटाएंअरुण जी,
जवाब देंहटाएंआपने छोटे अखबारों के हालात पर एकदम सटीक शब्द चित्र खींचा है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आपकी कविताओं पर टिप्पणी के लिये मेरे शब्द मूक हो जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंगूढ अर्थों से सजी बेजोड... रचना है
छोटे अखबारों के मार्केटिंग एक्जक्यूटिव ........सटीक चित्र खींचा है !
जवाब देंहटाएं...AAPKA JAWAAB NAHI ARUN JI...BAHUT KHOOB
जवाब देंहटाएंकविता मे माध्यम से कॉर्पोरेट जगत की व्यवस्था पर करारा व्यंग्य कसा है आपने।
जवाब देंहटाएंव्यंग्य के लिए द्वंद्व और अंतर्विरोध का होना ज़रूरी है। दो मूल्यों की टकराहट, दो परस्पर विपरीत स्थितियों की प्रस्तुति से व्यंग्य उत्पन्न होता है। कविता का रूप या शिल्प ऐसा होना चाहिए कि यह द्वंद्व या अंतरविरोध सर्वाधिक तीव्रता से व्यक्त हो सके।
आपकी यह कविता इस कसौटी पर अगर देखा जाए तो द्वंद्व और विद्रूप उभारने में सफल हुई है।
अरुण जी,
जवाब देंहटाएंआपने छोटे अखबारों के हालात पर एकदम सटीक शब्द चित्र खींचा है !
kabhi hum bhi isi kavitaa ke ek paatra they
जवाब देंहटाएंbahut khub....
जवाब देंहटाएंaccha wyangya hai.....
वो लम्हें जो याद न हों........
मेरे ख्याल से मनोज जी ने सब कह दिया उसके बाद कहने को बचा क्या है………वैसे एक नियम है ही संसार का ………हर बडी मछली छोटी मछली को निगल जाती है और ये उसी तर्ज़ पर संसार का चक्र चलता रह्ता है।
जवाब देंहटाएंअरुण जी,
जवाब देंहटाएंआपकी आज की कविता मुझे मेरी कहानी लगी... ! धन्यवाद !!
अनूठे विषय तलाश करते हैं आप ... व्यवस्था पर कटाक्ष किया है इस रचना के माध्यम से ...
जवाब देंहटाएंप्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया competition मीडिया में भी बहुत ज़ियादा हो गया है.पत्रकारिता में डिग्री लेकर आये new entrants को शुरू में बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है. इसलिए शुरू में वो छोटे अखबारों मे ही absorb हो पाते हैं. उनका performance उनके नाम कद और confidence को २-३ साल में अच्छा खासा बढ़ा देता है,बशर्ते की वो मेहनती हों, तब उस २-३ साल के तजुर्बे के साथ उन्हें बड़े अखबार या electronic मीडिया में entry मिल पाती है.इस नज़रिए से भी छोटे अखबारों का योगदान सराहनीय कहा जायेगा क्योंकि वो पौध को बड़ा करने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं.
जवाब देंहटाएंइस विषय से जुड़ी आपकी कविता सार्थक है.
बहुत ही सच्चाई बयां करती हुई कविता...... जैसे हर छोटी चीज बड़े को पाने का बस सहारा हो....
जवाब देंहटाएं.
सृजन शिखर पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "
सटीक रचना ...
जवाब देंहटाएंnaye vishay ke sath bajarvad ka adbhut udaharan....
जवाब देंहटाएंऐसे सपाट विषय पर घुमावदार कविता बहुत फब रही है.
जवाब देंहटाएंक्या सजीव चित्रण किया है बधाई
जवाब देंहटाएंहॉं,
जवाब देंहटाएंमैं एक भूतपूर्व स्थानीय अखबार हूँ,
आखिरी बार कब छपा था याद नहीं,
याद है तो
सहेजे हुए कुछ पीतवर्ण पन्नों पर
ट्रेडल मशीन की दाब
जिस दाब की धुँधली सी याद कहती है,
मैनें शायद कुछ सच कहा था,
उसके बाद बहुत कुछ हुआ,
खैर तुम्हें उससे क्या लेना देना,
तुम बड़े अखबार हो
तुममें मुझ जैसे कई अस्तित्व खो चुके अखबार समाये हैं
तुम अखबार नहीं वाद हो।
gajab ka chitran
जवाब देंहटाएंअरुण जी,
जवाब देंहटाएंकमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई
अरुण जी!
जवाब देंहटाएंइसके आगे वह काली स्याही से चलकर, आर्क लाईट का सफर तय करते हुए एक ऐसी मंजिल पर पहुंचता है जहां उसकी मुलाक़ात सात समंदर पार बैठी किसी राडिया से होती है और उसकी दुनिया बदल जाती है.
जो इस मुकाम तक नहीं पहुँच पाते वो ब्लॉग लिखते नज़र आते हैं. कई लोगों को देखा है मैंने अरुण जी... बहुत फ्रस्ट्रेशन है उनके अंदर!!
एक बार फिर बहुत ही पैनी नज़र!!
वाह..छा गए
जवाब देंहटाएंजैसे जैसे
जवाब देंहटाएंनिखरती है इनकी प्रतिभा
मीडिया बाज़ार की
नज़र पड़ती हैं इनपर
और हैक कर लिए जाते हैं
... bahut sundar ... behatreen rachanaa !!!
कार्यक्षेत्र का पहिया तो यही घुमाते हैं।
जवाब देंहटाएंएक खास कार्यक्षेत्र का जीवंत चित्रण .... बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंइसे गद्य में लिखा जाय तो गद्यकाव्य सा लगे।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक चित्रण...बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंअखबारों और मीडिया के साथ अधिक उजागर है यह सामाजिक प्रक्रिया.
जवाब देंहटाएंek baar fir se aapne anchhuye soch ko chhuya..........dekha sir aap kya ho..........:)
जवाब देंहटाएंmeri saari wishes aapke liye
aap bahut aage jaoge sir...:)
कितना सही अपने....!!!!
जवाब देंहटाएंएकदम सत्य...यही है आज का कटु सत्य...
प्रादेशिक समाचारपत्रों की विश्वसनीयता के सामने ये मुझे हास्यास्पद लगते हैं...
सत्य है, जज्बे वाला पत्रकार चकाचौंध में गम हो दल्लाल बन जाता है...
इस सटीक सार्थक उद्वेलित करने वाले रचना के लिए आपका बहुत बहुत आभार ...