१
कहा जाता है कि
अर्थशास्त्र
एक विज्ञान है
जहाँ किया जाता है
उत्पादन, वितरण व
खपत का प्रबंधन
अंतिम उद्देश्य होता है
संसाधनों का इष्टतम उपयोग
लाभ के साथ
केंद्र में नहीं होता
आम आदमी.
२
मांग और
आपूर्ति के बीच
संतुलन बिठाने की कला है
अर्थशास्त्र
जबकि मांगें
की जा रही हैं सृजित
चाहे-अनचाहे
और आपूर्ति हो रही है
छद्म मांगों पर
३
अर्थशास्त्र में
मूल्य के निर्धारण का
आधार होता है
आधार होता है
लागत और मांग
जबकि बदल गए हैं
मूल्य के आदान ही.
जबकि मांगें - की जा रही हैं सृजित
जवाब देंहटाएंबिलकुल सत्य...........
नए सिरे से सोचने को मजबूर कर दिया आपने.
arthshashtra pe itna karara vyangya...kya baat hai sir....:D
जवाब देंहटाएंkash ye arthsastra garibi aur amiri ke bich ki kadi ban pati..:)
आम आदमी सभी के रडार पर है .राहुल गाँधी से लेकर प्रत्येक बहुराष्ट्रीय कम्पनी के बाज़ार प्रबंधकों तक .लेकिन एजेंडा एक ही है कि इसे कैसे ठगा जाये .
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता के लिए बधाई .
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअर्थ सारे खो चुके हैं, शास्त्र पढ़ता कौन है
जवाब देंहटाएंमूल्य खोकर, दर की बातों पर सभी का मौन है।
अर्थशास्त्र
जवाब देंहटाएं१
कहा जाता है कि
अर्थशास्त्र
एक विज्ञान है
जहाँ किया जाता है
उत्पादन, वितरण व
खपत का प्रबंधन
अंतिम उद्देश्य होता है
--
बहुत ही अच्छे हैं सभी शब्दचित्र!
बुधवार के चर्चा मंच पर इस पोस्ट की चर्चा भी तो की गई है!
बहुत खूब ... अर्थशास्त्र के सीधन्त का नया मूल्यांकन किया है ...
जवाब देंहटाएंजबकि मांगें
जवाब देंहटाएंकी जा रही हैं सृजित
चाहे-अनचाहे
और आपूर्ति हो रही है
छद्म मांगों पर
कितनी कुशलता से इस विडम्बना को शब्दों में ढाल दिया है...
अच्छी कविता
जबकि बदल गए हैं
जवाब देंहटाएंमूल्य के आदान ही.
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
बहुत गहरे चिंतन से उपजी पोस्ट .....शुक्रिया
बेहतरीन रचना |
जवाब देंहटाएंaअर्थशास्त्र मतलव केवल कमाई करो अपनी जेबें भरो बाकी चाहे मरो। बहुत गहरे भाव लिये आपकी रचना आज के बाजारवाद का सच है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह अरुण सर..
जवाब देंहटाएंऐसी रचनायें आप ही कर सकते हैं...
अच्छी लगी कवितायें…हिन्दी में ऐसे विषयों पर कम लिखा गया है
जवाब देंहटाएंwaah, ek alag si rachna
जवाब देंहटाएंबदलते मूल्यों का भी कारण है आधुनिक अर्थशास्त्र।
जवाब देंहटाएं... bahut badhiyaa !!!
जवाब देंहटाएंअर्थशास्त्र के सिद्धांतों की अच्छी व्याख्या की है आपने!! यही तो है असली अर्थशास्त्र जिसका ज्ञान किसी को अमीर नहीं बनाता, सिर्फ यह बताता है कि वह गरीब क्यों है!
जवाब देंहटाएंआम आदमी को ध्यान में रख कोई अर्थशास्त्र नहीं बनाया गया .... उसकी भूमिका राजनीती शास्त्र तक सीमित है
जवाब देंहटाएंअर्थशास्त्र के सीधन्त की अच्छी व्याख्या की है आपने
जवाब देंहटाएंक्या बात है...बहुत उम्दा!! जुदा अंदाज!
जवाब देंहटाएंबाज़ारवाद पर अच्छा कटाक्ष्…………सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंअर्थशास्त्र में
जवाब देंहटाएंमूल्य के निर्धारण का
आधार होता है
लागत और मांग
जबकि बदल गए हैं
मूल्य के आदान ही.
अर्थशास्त्र के मूल में कुछ और व्यवहार में कुछ,यही सब तो विडम्बना हैं.
अच्छी प्रस्तुति.
ARUN JEE
जवाब देंहटाएंNAMAKSAR !
'' ARTH SAASTRA '' KI ACHCHI ABHIVYAKTI KI HAI .
SAADAR !
मैंने भी इसी विषय में अपना P.G. किया है...
जवाब देंहटाएंमेरे हिस्साब से ये एक बहुत कठिन विषय है जिसमे एक्साम पास करना बोर्ड्स मृत के साथ निकालने के बराबर है...
jokes apart... अच्छा अध्ययन है...
अर्थशास्त्र इस मायने में एक विज्ञान ही है, क्योंकि इसके केंद्र में (आम) आदमी नहीं होता. कविता के साथ गंभीर विश्लेषण है यह. प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान को आपकी मानविकी दृष्टि खूब पकड़ती है.
जवाब देंहटाएंप्रिय बंधुवर अरुण चन्द्र रॉय जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
अर्थशास्त्र अपने लिए तो सदैव ही अरुचिकर रहा है …
इसलिए आपकी कविताओं पर अधिक कहना संभव नहीं ।
… अच्छा सृजन आप निरंतर करते ही हैं
पिछली कुछ पोस्ट्स की तुलना में आज डूब नहीं पा रहा हूं आपकी कविताई में … ज़ाहिर है, विषय ही ऐसा है ।
~*~नव वर्ष 2011 के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जीवन अर्थशास्त्र पर ही आधारित है। बेहतरीन कविताओं के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंअर्थशास्त्र को नए ढंग से परिभाषित किया है.अच्छा अध्ययन, अच्छा सृजन है ये.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंएक ज़रूरी कविता
उद्धव जी से मिलिये जी !!