भूगोल की किताबों में
जरुर हो तुम एक देश
किन्तु वास्तव में
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
युद्ध के मैदान से
किन्तु वास्तव में
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
युद्ध के मैदान से
दशकों बीत गए
बन्दूक के साए में
सत्ता और शक्ति
परिवर्तन के साथ
दो ध्रुवीय विश्व के
एक ध्रुवीय होने के बाद भी
नहीं बदला
तुम्हारा प्रारब्ध
बन्दूक के साए में
सत्ता और शक्ति
परिवर्तन के साथ
दो ध्रुवीय विश्व के
एक ध्रुवीय होने के बाद भी
नहीं बदला
तुम्हारा प्रारब्ध
काबुल और हेरात की
सांस्कृतिक धरोहर के
खंडित अवशेष पर खड़े
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
रक्तरंजित वर्तमान से
खंडित अवशेष पर खड़े
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
रक्तरंजित वर्तमान से
बामियान के
हिम आच्छादित पहाड़ों में
बसे मौन बुद्ध
जो मात्र प्रतीक रह गए हैं
खंडित अहिंसा के
अपनी धरती से
विस्थापित कर तुमने
गढ़ तो लिया एक नया सन्देश
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
मध्ययुगीन बर्बरता से
हिम आच्छादित पहाड़ों में
बसे मौन बुद्ध
जो मात्र प्रतीक रह गए हैं
खंडित अहिंसा के
अपनी धरती से
विस्थापित कर तुमने
गढ़ तो लिया एक नया सन्देश
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
मध्ययुगीन बर्बरता से
जाँची जाती हैं
आधुनिकतम हथियारों की
मारक क्षमता
तुम्हारी छाती पर
आपसी बैर भुला
दुनिया की शक्तियां एक हो
अपने-अपने सैनिको के
युद्ध कौशल का
देखते हैं सामूहिक प्रदर्शन
लाइव /जीवंत
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
सामरिक प्रतिस्पर्धा से
आधुनिकतम हथियारों की
मारक क्षमता
तुम्हारी छाती पर
आपसी बैर भुला
दुनिया की शक्तियां एक हो
अपने-अपने सैनिको के
युद्ध कौशल का
देखते हैं सामूहिक प्रदर्शन
लाइव /जीवंत
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
सामरिक प्रतिस्पर्धा से
खिड़कियाँ जहाँ
रहती हैं बंद सालों भर
रोशनी को इजाजत नहीं
मिटाने को अँधेरा
बच्चे नहीं देखते
उगते हुए सूरज को
तितलियों को
फूलों तक पहुँचने की
आज़ादी नहीं
हँसना भूल गयी हैं
जहाँ की लडकियां
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
फिल्मो/ डाक्युमेंटरी/ रक्षा अनुसन्धान के विषय भर से
रहती हैं बंद सालों भर
रोशनी को इजाजत नहीं
मिटाने को अँधेरा
बच्चे नहीं देखते
उगते हुए सूरज को
तितलियों को
फूलों तक पहुँचने की
आज़ादी नहीं
हँसना भूल गयी हैं
जहाँ की लडकियां
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
फिल्मो/ डाक्युमेंटरी/ रक्षा अनुसन्धान के विषय भर से
सदियों से चल रहा
यह दोहरा युद्ध
एक -दुनिया से
और एक- स्वयं से
सूरज को दो अस्तित्व कि
मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा
खोल दो खिड़कियाँ
तुम अफगानिस्तान
इस से पहले कि
मिट जाए अस्तित्व
भूगोल की किताबों से .
यह दोहरा युद्ध
एक -दुनिया से
और एक- स्वयं से
सूरज को दो अस्तित्व कि
मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा
खोल दो खिड़कियाँ
तुम अफगानिस्तान
इस से पहले कि
मिट जाए अस्तित्व
भूगोल की किताबों से .
अरुण जी! आपने आशा की खिड़की खोल दी है, और हम भी यह आशा रखते हैं कि यह मुल्क एक ख़ूबसूरत वादियों के रूप में जाना जाए,जैसा कि हमने फ़िल्म धर्मात्मा में देखा था या ख़ुदा गवाह में!न कि वैसा जैसा आज वो रियल लाइफ में है!!
जवाब देंहटाएंकाबुल नदी में ख़ून की जगह फिर से एक पवित्र जल का प्रवाह हो,बस यही आशा है!!
अनूठे और अनछुए विषयों पर लिखी आपकी रचनाएँ हमेशा ही प्रभावित करती हैं उसी का सबूत है "अफगानिस्तान".
जवाब देंहटाएंगज़ब!!
जवाब देंहटाएंदुनियां, कुछ लोग कहते हैं संवर रही है। पर दुनिया के इस तरह संवरते जाने में एक विडंबना है| इस संवरती दुनिया में महज वे चंद देश है जिन्होंने पूरी दुनिया पर अपना साम्राज्य जमा रखा है। कई देश इन साम्राज्यवादी ताकतों के सामने घुटने टेक दिए और जिनके कारण ही चंद देश का अस्तित्व खतरे में है। जैसे अफ़ग़ानिस्तान, जो हाशिये पर पहुंचा दिया गया है और बहुत दयनीय स्थिति में रहने को अभिशप्त हैं।
जवाब देंहटाएंअरुण जी! इस कविता में आपने भौगोलिक अफ़गानिस्तान के द्वारा संपूर्ण वर्तमान का चित्र खींचा है, धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंभारत से कल कुछ लोग बाघा बार्डर पार करते हुए गाजा के लिये निकले हैं अमन का पैगाम लेकर ऐसे समय में आपकी ये कविता पढ़कर उनकी सनक पर फक्र हो रहा है।
सदियों से चल रहा
जवाब देंहटाएंयह दोहरा युद्ध
एक -दुनिया से
और एक- स्वयं से
सूरज को दो अस्तित्व कि
मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा...
बहुत सार्थक अभिव्यक्ति ...
सदियों से चल रहा
जवाब देंहटाएंयह दोहरा युद्ध
एक -दुनिया से
और एक- स्वयं से
सूरज को दो अस्तित्व कि
मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा
sanjeev ji ne sab kuch byan kar diya ....arun ji..
भारत की भी यही दशा ना हो जाए ...
जवाब देंहटाएंरात दिन इसी फिक्र में गुजरते हैं ...
दूसरों के हाल पर क्या तरस खाएं ..!
सांस्कृतिक इतिहास रक्तपूरित वर्तमान और अनिश्चित भविष्य में बदल गया है।
जवाब देंहटाएंकाश ये कविता अफगानिस्तान के लोग पढ़ते तो शायद उन्हें ये एहाशाश होता कि किधर जा रहे हैं वो लोग.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया प्रस्तुति.
badhiyaa
जवाब देंहटाएंसही में, अफगानिस्तान का नक्शा ही सामने रख दिया ....
जवाब देंहटाएंकविता सोचने पर मजबूर करती है..
एक सफल प्रयास.
सांस्कृतिक धरोहर के
जवाब देंहटाएंखंडित अवशेष पर खड़े
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
रक्तरंजित वर्तमान से
बिल्कुल नए विषय पर नए अंदाज की कविता।
अरुण जी,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह अलग और अछूता विषय लिया है आपकी पैनी दृष्टि वहाँ देख लेती है जहाँ हम जैसे आम इंसान देखते ही नही तो सोचना तो दूर की बात है……………यही आपकी अलौकिक क्षमता है जिसके हम कायल हैं………… कविता के माध्यम से अफ़गानिस्तान के हालात का सजीव और सटीक चित्रण किया है ।
arun ji kavita ka falak vyapak hai lekin aur shodh kee aavyashkta hai kavita ko gambhir banane ke liye...
जवाब देंहटाएंकविता तो बहुत अच्छी है..बिलकुल अफगान की दशा को रेखांकित करती हुई...
जवाब देंहटाएंपर अफगान से ये शिकवा क्यूँ कि खिड़कियाँ खोल दो...देश तो वहाँ के लोगों से बनता है...और वे बिचारे वैसे ही पिस रहें हैं...और अपने देश की दुर्दशा से उतने ही दुखी हैं .
वैसे कविता बढ़िया है..
आप खालिद हुसैनी की "काईट रनर" और दूसरी किताबें जरूर पढ़ें
अफगानिस्तान के माहौल पर वहां के सत्ता धारियों को सोचने पर विवश करती सामयिक कविता,
जवाब देंहटाएंखिड़कियाँ जहाँ
जवाब देंहटाएंरहती हैं बंद सालों भर
रोशनी को इजाजत नहीं
मिटाने को अँधेरा
बच्चे नहीं देखते
उगते हुए सूरज को
तितलियों को
फूलों तक पहुँचने की
आज़ादी नहीं
हँसना भूल गयी हैं
जहाँ की लडकियां
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
फिल्मो/ डाक्युमेंटरी/ रक्षा अनुसन्धान के विषय भर से कवि ने भौगोलिक विम्बों के सहारे वर्तमान की विद्रूपताओं पर कठोर प्रहार किया है. कवि का आक्रोश और विरल दृष्टि ही इस कविता का काव्य-सौन्दर्य है. विरोधी स्वर के बावजूद कविता पढने में सुन्दर लगती है. यह कविता पाठ्य-पुस्तकों मे शामिल करने योग्य है. जहां तक मैं ने अरुण जी की रचनाओं को पढ़ा है, यह उनकी सबसे पारदर्शी कविताओं में से एक है.
प्रभावी अभिव्यक्ति ....... विचारणीय पहलू को सामने रखती कविता....
जवाब देंहटाएंकाव्य रूप में अफगानिस्तान का सच बहुत सुन्दर तरीके से लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंअरुण जी! सदियों से चल रहा
जवाब देंहटाएंयह दोहरा युद्ध
एक -दुनिया से
और एक- स्वयं से
सूरज को दो अस्तित्व कि
मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा...
इस कविता में आपने भौगोलिक अफ़गानिस्तान के द्वारा संपूर्ण वर्तमान का चित्र खींचा है, धन्यवाद.
... bhaavpoorn rachanaa ... behatreen !!!
जवाब देंहटाएंजब जब कोई भी ताक़त अपने आगे दूसरे को कुछ नही समझना चाहते उनका यही हाल होता है ...
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