प्रिये
आज दूर हो तुम लेकिन
लिख नहीं पाया
तुम्हारे लिए कुछ भी
हर पल/ हर क्षण लगा
साथ बैठी हो तुम
मेरे कंधे पर
रख लिया है
तुमने अपना सिर
तुम्हारे केश
मेरे शर्ट की बटन से उलझ गए हैं
दिन भर मैं
सुलझाता रहा
तुम्हारे केश
शब्द गए उलझ !
एक बार तो ऐसा लगा
मानो मेरे कानो में
कुछ कह रही हो तुम
और तुम्हारी उंगलिया
मेरे महीनो से नही कटे बाल को
सहेज रही हो तुम
जैसे सहेजती हो तुम
अपना आँचल
अपनी किताबें
किताबों में पड़ी कुछ चिट्ठियाँ
सूखे फूल
पढता रहा फिर से
तुम्हारी किताबों में पड़ी पुरानी चिट्ठियों को और
सूखे फूलों को देखते देखते
सूरज उड़ गया
लगा कर पंख
लगा कर पंख
धूप भी लौट गई
अपने घोसलें में
अपने घोसलें में
शब्द नहीं लौटे मेरे पास
साथ जो गए तुम्हारे
लगा ही नहीं कि
दूर हो तुम मुझे से किसी भी पल
और लिखी जाए तुम्हारे लिए
कोई कविता.
किताबों में पड़ी कुछ चिट्ठियाँ
जवाब देंहटाएंसूखे फूल
पढता रहा फिर से
तुम्हारी किताबों में पड़ी पुरानी चिट्ठियों को और
सूखे फूलों को देखते देखते
अब चिट्ठियां कविताओ में ही जिंदा रह गई हैं ...अच्छी रचना
काफी भावुक हो गया ये पढ़कर... आपकी ज्यादातर कवितायेँ सेंटी कर देती हैं...
जवाब देंहटाएंपहचान कौन चित्र पहेली को अभी भी विजेता का इंतज़ार ...
लगा ही नहीं कि
जवाब देंहटाएंदूर हो तुम मुझे से किसी भी पल
और लिखी जाए तुम्हारे लिए
कोई कविता.
यही अहसास तो जीवन्त रखता है भावो को……………………देखा कविता फिर भी लिखी गयी……………………बस यही तो होता है ना चाहते हुये भी ………सुन्दर भावाव्यक्ति।
चलिए, लिख गई एक अच्छी-खासी कविता.
जवाब देंहटाएंसूखे फूलों को देखते देखते
जवाब देंहटाएंसूरज उड़ गया
लगा कर पंख
धूप भी लौट गई
अपने घोसलें में
शब्द नहीं लौटे मेरे पास
साथ जो गए तुम्हारे
बहुत सुंदर भावनात्मक अभिव्यक्ति .....एकदम दिल को छु जाने वाली पंक्तियाँ ...शुक्रिया
5/10
जवाब देंहटाएंअच्छी और नाजुक कविता
आखिरी पंक्तियों की तासीर गहरी है.
कोमल मन की सुंदर भावनाओं की उत्तम अभिव्यक्ति। कई बार न कहते हुए भी हम बहुत कुछ कह जाते हैं, इसी तरह नहीं लिखते हुए भी ...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है। बधाई।
जवाब देंहटाएंसब कुछ तो लिख ही दिया अरुण जी!! और सादगी देखिये कि कहते हैं कुछ भी नहीं लिख पाया...हाँ एक बात और! अगर सचमुच नहीं ही लिखा है अब तक कुछ भी,तो प्लीज़ कुछ न लिखिए.. कई बार लिख देने से शब्द मर जाते हैं,न लिखा तो अमर हो जाते हैं... धरती के कागज़ पर,जमुना किनारे,संगमरमर से लिखी कविता देखी है न आपने!!!
जवाब देंहटाएंकुछ न कहो, कुछ भी ना कहो, क्या कहना है??? क्या सुनना है??? सबको पता है. हमको भी.....
जवाब देंहटाएंpyaar kee is anubhuti ko hum mahsoos kar sakte , shabd shabd milkar bhi use kah nahin paate
जवाब देंहटाएंबहुत ही कोमल और प्यारी अनुभूति ....सुन्दर शब्दों से सजाया है
जवाब देंहटाएंभावुक कर देने वाली रचना ....... सुन्दर भावाभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंदिन भर मैं
जवाब देंहटाएंसुलझाता रहा
तुम्हारे केश
शब्द गए उलझ !
लगता है केश सुलझते ही शब्द भी सुलझ गये हैं और एक अच्छी कविता बन गयी। बेहतरीन अभिव्यक्ति--- बधाई।
कोमल भाव की रचना
जवाब देंहटाएंशायद लिख पाने के लिये दूरी आवश्यक है
कविता में भावनाएं स्वयं मुखरित हो रही हैं !
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
भावुक कर देने वाली रचना!
जवाब देंहटाएंआभार!
एक बार तो ऐसा लगा
जवाब देंहटाएंमानो मेरे कानो में
कुछ कह रही हो तुम
और तुम्हारी उंगलिया
मेरे महीनो से नही कटे बाल को
सहेज रही हो तुम
जैसे सहेजती हो तुम
दिल को छु जाने वाली पंक्तियाँ .
भावुक कर जाती कविता।
जवाब देंहटाएंआज दूर हो तुम लेकिन
जवाब देंहटाएंkaha ho door man se mahsoosta hu tumhe ,karta hu bate ....ginta hu har ek pal tumhare sanidhdhya ka.....lekin fir bhi door ho tum....