१
वातानुकूलित
सम्मेलन कक्ष में
बनायी जाती है रणनीति
कैसे छला जाना है
संवेदनाओं को
व्यापक रूप से,
कहा जाता है
उसे 'ब्रीफ'
२
पहुंचना
होता है
हर घर की जेब तक
कहा जाता है
छूना है
दिलों को
३
करनी है
संबंधों की बात
दिखानी है
रिश्तों की अहमियत
वास्तव में
लक्ष्य है
इस फेस्टिव सीज़न
जमा पूंजी में सेंध
४
संस्कृति
और परम्पराएं
तो बस साधन हैं
साध्य है
असीम विस्तार
नए बाज़ार
नए एम ओ यू
कुछ विलय
कुछ अधिग्रहण
विज्ञापन बनाते हुए
करने होते हैं
कई कई समझौते
हर बार स्वयं से
मुक्त छंद मे आपकी संवेदना मुखरित है.
जवाब देंहटाएं"विज्ञापन बनाते हुए
करने होते हैं
कई कई समझौते
हर बार स्वयं से .......... "
धन्यवाद !!
भाई वाकई, सचाई से रूबरू करवाती हुई, शानदार रचना. साधुवाद स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंsir!!! ek baar firm aapne puri sachchai ko sabdo me peerote hue...kavita bana daali,...:)
जवाब देंहटाएंhats offf!
एक कड़वी सच्चाई है कि विज्ञापन बनाते हुए करने होते हैं कई कई समझौते हर बार स्वयं से ..........।
जवाब देंहटाएंउनका दर्द भी देखें जिन्हें इन विज्ञापनों की पृष्ठभूमि तैयार करनी होती, यह जानते हुए कि, एक और नाली तैयार हो रही है पैसा बहाने के लिये। आजाद भारत के 60 से अधिक वर्षों में कितना ही पैसा मुखौटे तैयार करने में बह गया?
बड़ा सच व्यक्त किया आपने। किस प्रकार भावनायें उभार कर माल बेचा जाये।
जवाब देंहटाएंबहुत पेना और सटीक कटाक्ष इन रचनाओं के माध्यम से.
जवाब देंहटाएंअरुण जी,
जवाब देंहटाएंविज्ञापन बनाते हुए
करने होते हैं
कई कई समझौते
हर बार स्वयं से
इमानदारी से स्वयं को संबोधित की गई कविता
पहुंचना
जवाब देंहटाएंहोता है
हर घर की जेब तक
कहा जाता है
छूना है
दिलों को
karara vyangya
अरुण जी,
जवाब देंहटाएंआपने आज विज्ञापन के यथार्थ से परिचय करा दिया !
आभार ,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
Vigyapan ki chamakti chakachondh jeevan ka stay khol diya aapne .... Lajawaab....
जवाब देंहटाएंहर क्षणिका आज के सच से रूबरू करवाती हुयी। बाजार वाद और दिखावे ने सभी संवेदनायें लील ली है। धन्यवाद इस सच को दिखाने के लिये।
जवाब देंहटाएंसच्चाई को निर्ममता से उजागर करती आपकी इस रचना की जितनी प्रशंशा की जाए कम है...बधाई स्वीकारें..
जवाब देंहटाएंनीरज
सच व्यक्त किया आपने
जवाब देंहटाएंvigyapan yug ke yatharth se parichit karati hui rachna!
जवाब देंहटाएंएक यात्रा उस १५ से १८ सेकण्ड के कोमर्शियल की, जो इस अल्पावधि में सिर्फ माल ही नहीं बेचते, बेच डालते हैं कुछ रिश्ते की कोमल छुवन, कुछ बच्चों की मासूम मुस्कान, कुछ जीवन की कडवी सच्चाइयां और बहुत सारा झूठ!!
जवाब देंहटाएंकम से कम आपकी यह ईमानदार अभिव्यक्ति को हम आपकी वास्तविक अभिव्यक्ति मानें, न की अभिव्यक्तियों का विज्ञापन!!
:)
सूक्ष्म अवलोकन ...बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसच को उजागर करती आपकी ये रचनायें बहुत सुन्दर हैं।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंअपनी ही दुनिया की पोल
जवाब देंहटाएंअरुण मत खोल
ऐसे बोल
मत बोल
रहने दे कुछ लकीरें लंबी, आरी, तिरछी और बाक़ी सब गोल।
एकदम खरी -खरी कह डाली .बधाई अरुणजी .
जवाब देंहटाएंsab kuchh jaante bujhte hue bhi insan yahi kar rahaa hai , aapne badi safaaee se ise shabd de diye hain ...
जवाब देंहटाएंविज्ञापन बनाते हुए
जवाब देंहटाएंकरने होते हैं
कई कई समझौते
हर बार स्वयं से
ईमानदारी वाली अभिव्यक्ति . good
कई बार लगता है ना ..कहां गलत जगह फस गए ..दिल हर बार बगावत करता है जो कर रहे है वो सही नहीं है पर दिमाग कहता है दिल की सुनोगे तो भूखे मरोगे
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.uchcharan.com/
संस्कृति
जवाब देंहटाएंऔर परम्पराएं
तो बस साधन हैं
साध्य है
असीम विस्तार
नए बाज़ार
नए एम ओ यू
कुछ विलय
कुछ अधिग्रहण
क्या बात है ..अच्छी बात कही आपने
करनी है
जवाब देंहटाएंसंबंधों की बात
दिखानी है
रिश्तों की अहमियत
वास्तव में
लक्ष्य है
इस फेस्टिव सीज़न
जमा पूंजी में सेंध
विज्ञापन जगत के खोखलेपन को उजागर करती एक उत्कृष्ट व्यंग्य रचना।
करनी है
जवाब देंहटाएंसंबंधों की बात
दिखानी है
रिश्तों की अहमियत
वास्तव में
लक्ष्य है
इस फेस्टिव सीज़न
जमा पूंजी में सेंध
...कमाल की बात कही है
sach ko baya karti....behad khubsurat,,,,badhai ho
जवाब देंहटाएंविज्ञापन बनाते हुए
जवाब देंहटाएंकरने होते हैं
कई कई समझौते
हर बार स्वयं से
स्वयं से किया हुआ समझौता शायद सालता बहुत है
वातानुकूलित
जवाब देंहटाएंसम्मेलन कक्ष में
बनायी जाती है रणनीति
कैसे छला जाना है
संवेदनाओं को
व्यापक रूप से, sateek sachchai hai ye....yahi to ho raha hai...
आदरणीय अरुण जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
सब कुछ सामने ला दिया आपने ....बहुत शुक्रिया आपका ...शब्दों पर आपकी गहरी पकड़ भाव को ग्राह्य बनाती है