ए़क चिड़िया को
आकाश में उड़ते देखा
सूरज की ढलती नारंगी में
आसमान को चुनौती देते उसके पंख
सुनहरे लग रहे थे
चिड़िया भी
क्षितिज को चूमती
प्रिय लग रही थी
मैंने
चिड़िया को दिखाया
और भी सुंदर आसमान
चिड़िया हंसने लगी थी
मैंने कहा
देखो चिड़िया
तुम्हारी आँखों में हैं सपने
सच करना है
तुम्हे
चिड़िया ने फडफडाए अपने पंख
ख़ुशी में
छूने को आकाश और भी ऊँचे
चिड़िया
उड़ने लगी
मैंने कहा
थोड़ी देर बैठो मेरे पास
चिड़िया
बैठ गयी
मैंने कहा
तुम्हारा बैठना
अच्छा लगता है
हंस कर चिड़िया ने कहा
लेकिन मेरी उड़ान !
मैंने शब्दों का
ए़क जाल बुना
कहा देखो कितना सुंदर है
चिड़िया को भी
अच्छा लगा
शब्दों का जाल
चिड़िया के पंख
अब आसमान को नहीं माप रहे थे
शब्दों में रह गए थे
उलझ कर
चिड़िया
ऊब गयी थी अब
भूलती जा रही थी उड़ना
चिड़िया ने कहा
मुझे उड़ने दो
मुझे फ़ैलाने दो अपने पंख
मुझे दो मेरा आकाश
तोड़ दिया उसने
शब्दों का जाल
चिड़िया खुश थी
चिड़िया उड़ रही थी
टूटे हुए शब्द
अब कांटे से लग रहे थे
लग रहा था मुझे भी
देना था मुझे आकाश
फिर क्यों दिया
मैंने जाल शब्दों का
होने को कैद
टूटे हुए शब्द
जोड़ रहा था
मैं
बनाने को ए़क स्मृति चिन्ह
चिड़िया की मधुर स्मृति में
चिड़िया जब भी
इधर से गुजरती
देखती मुझे
मेरे शब्दों को
स्मृतियों को
ए़क पल रूकती
डर जाती
फिर उड़ जाती
आसमान में फैला कर अपने पंख
चिड़िया नहीं जानती स्मृति क्या होती है
उसे उड़ना पसंद है
उड़ान ही उसका स्वप्न है
उड़ान ही उसका लक्ष्य है
फिर क्यों ये ठहराव
चिड़िया उड़ना
थक जाने तक
लेकिन
जरुर आना ए़क बार
मेरे ह्रदय में
तुम्हारा घोंसला
खाली रहेगा
चिरंतन तक
ताकि कर सकू मैं
शब्दों के जाल बुनने का
प्रायश्चित