शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

साक्षात्कार

फूल
जो गिरे होते हैं
पेड़ के नीचे
दूब की सेज़ पर
ओस की बूंदों से सजे,
पूजा के लिए
उन्हें चुनना
एक संवाद है
एक अनुभव है
एक यात्रा है
ए़क साक्षात्कार है
प्रकृति से

तुम
प्रकृति का उपहार सी
पृथ्वी के विस्तार पर
क्षितिज सा चूमती
लग रहा था
असंख्य फूल
एक हो गए हैं
सुवासित
सुगन्धित
सुरंजित
और उनमें से
चुनना
गिन गिन कर
साँसे
ए़क संवाद है
एक अनुभव है
एक यात्रा है
एक साक्षात्कार है
प्रकृति से
ईश्वर से
स्वयं से ।

15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...अद्भुत भावाभिव्यक्ति है...एक दम अनूठी...बहुत बहुत बधाई इस सार्थक लेखन के लिए...

    नीरज

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  2. प्रतीकों का सहज एवं सफल प्रयोग किया गया है। ये आपकी आत्माभिव्यक्ति की अकांक्षा को प्रदर्शित करता है। आपका प्रकृति से साक्षात्कार दिलचस्प है।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    मशीन अनुवाद का विस्तार!, “राजभाषा हिन्दी” पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें

    अंक-9 स्वरोदय विज्ञान, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

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  3. अंततः स्वयं से साक्षात्कार-यही तो चरम बिंदु है कविता का .सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  4. ईश्वर को कण-कण में पाने की मीठी जिद्द और पूर्ण श्रद्धा से देखने का सही नज़रिया और फिर उनके अहसास को साक्षात्कार में बदलने वाले कवि की अदभुत भक्ति है |

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  5. जितने कोमल शब्दों को आपने पिरोया है उतने ही कोमल भाव... भक्ति और ईश्वर की नई परिभाषा गढ़ दी है आपने.. एक अनोखा साक्षात्कार!!

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  6. यह बड़ा लम्बा सम्पर्क है, कई जीवनों का।

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  7. साक्षात्कार करना वो भी प्रकृति से कहो या ईश्वर से या स्वंय से ………………उसका बेहतरीन चित्रण किया है…………………आत्मानुभव होने के बाद बस हर तरफ़ आनन्द ही आनन्द बरसता है जैसे प्रकृति मे।

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  8. ye sakshatkar adbhut hai,jo aapke jeevan ko roshan kare...bahut sunder....

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  9. वाह!!!!प्रेम में सराबोर साक्षात्कार

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