गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

बटन

नहीं पता 
कब आया  
अस्तित्व में  
बटन  
लेकिन 
जरुरी हो गया है 
यह 

प्लास्टिक के/लोहे के/स्टील के / शीशे के /हाथी के दांत के/ सोने के/हीरे जड़े 
बटन पहचान बन गए हैं 
आदमी के .
रूप भी/ आकार भी/ 
बदल गए हैं 
जैसे जैसे बदल रहे हैं हम 
डिजाइनर हो रहे हैं  
बटन 
हूक/जिप/और भी कई नाम /काम हैं बटन के  
अर्थव्यवस्था के विविधिकरण की तरह  

शुरू शुरू में 
नहीं हुआ करता होगा यह  
तो भी 
बची होंगी 
मर्यादाएं 
ढके गए होंगे
बदन  
बिना बटन  

शालीनता/प्रतिष्ठा/ 
व्यक्तित्व के साथ साथ  
व्यक्त करता है 
आपकी धन सम्पदा/ 
शान शौकत भी .    
कई बार भीतर    
पाले होते हैं लोग  
पशु या राक्षस  
लेकिन जो पूरे लगे होते हैं बटन 
पाते हैं वे पूरी प्रतिष्टा  
इस तरह मुखौटे का भी काम करते हैं बटन  . 

कई माओं को देखा है 
जमा करते  
पुरानी कमीज/शर्ट/पैंट से  
सावधानी से उतरते बटन  
संभल कर रखती भी हैं 
ए़क छोटी सी डिबिया में 
मानो गहने हो  

मेरी कमीज़ में  
लगे हैं कई तरह के बटन   
एक बटन बाबूजी की पुरानी कमीज से
उतार कर लगाई है. 

23 टिप्‍पणियां:

  1. बटन के माध्यम से जीवन दर्शन को बयां कर दिया……………लगभग सभी रंग जीवन के उतर आये हैं……………बेहतरीन बिम्ब प्रयोग्……………शानदार रचना।

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  2. सुकोमल भावों को लेकर रची गई मनमोहक रचना...बधाई

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  3. बेहतरीन बिम्ब प्रयोग्...
    वाह ..बेहद खूबसूरत ख्याल.

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  4. आपकी हर रचना निशब्द कर देती है। बहुत बहुत शुभकामनायें।

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  5. बटन के बारे में इतना नहीं सोचा था.. सोचने को मजबूर करने के लिए धन्यवाद..

    आभार

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  6. एक बटन बाबूजी की पुरानी कमीज से
    उतार कर लगाई है

    -कितना दूर तक ले गईं यह पंक्तियाँ.

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  7. jabardast kavitaa..ye hunar bas aap mein hee dekhaa..aam chizon ko khaas banana

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  8. मेरी कमीज़ में
    लगे हैं कई तरह के बटन
    एक बटन बाबूजी की पुरानी कमीज से
    उतार कर लगाई है.
    --
    बहुत ही खोजपरक और सुन्दर रचना है!
    --
    रचनाकारी बहुत ही नये विषय को लेकर की गई है!

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  9. कई माओं को देखा है
    जमा करते
    पुरानी कमीज/शर्ट/पैंट से
    सावधानी से उतरते बटन
    संभल कर रखती भी हैं
    ए़क छोटी सी डिबिया में
    मानो गहने हो

    बहुत बेहतरीन रचना

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  10. "बटन" कविता का प्रयोगशील प्रतीक है | कविता में सबकुछ होते हें भी कहीं कुछ कमीं महसूस हुई तो वह है, अहसास की, गहरे लगाव की, संवेदना की.... जो काफी गहराई दे सकती थी इस कविता को...! प्रयोग के लिएँ धन्यवाद तो दूंगा ही, मगर अच्छी रचना बनाने से टूट जाए तो मन भी....

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  11. मेरी कमीज़ में
    लगे हैं कई तरह के बटन
    एक बटन बाबूजी की पुरानी कमीज से
    उतार कर लगाई है.

    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...

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  12. इस कविता का उत्कर्ष ही यही है कि यह जीवन के ऐसे प्रसंगों से उपजी है जो निहायत गुपचुप ढंग से हमारे आसपास सघन हैं लेकिन हमारे तई उनकी कोई सचेत संज्ञा नहीं बनती। आप उन प्रसंगों को चेतना की मुख्य धारा में लाकर पाठकों से उनका जुड़ाव स्थापित कर देते हैं। यह एक ऐसी संवेद्य कविता है जिसमें हमारे यथार्थ का मूक पक्ष भी बिना शोर-शराबे के कुछ कह कर पाठक को स्पंदित कर जाता है।

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  13. बटन पर भी कविता की जा सकती हे ...जी हां ,कवि की सूक्ष्म दृष्टि से कुछ भी छुपा नहीं है।।
    इस कविता में जीवन के कई रंग हैं। मार्मिकता है तो यहां व्यंग्य भी है-बटन मुखौटों का भी काम करते हैं। अत्यंत प्रभावशाली रचना।...बधाई।

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  14. लो अव बटन भी नहीं बच पायी कवि की नजर से. मगर अरून जी बहुत ही प्रभावशाली रचना बन पडी है आपकी ये बटन.... कमाल है जी.

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  15. बहुत ही सुंदर... एक छोटा सा बटन.... और जिंदगी की हर बड़ी बात...वो भी एक साथ... कमाल है...

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  16. बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  17. batan ke sahare jeevan ki vyakhya .utkrisht rachana ke liye dhanywad.

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  18. आदिम जीवन से आधुनिकता की विकास यात्रा --
    प्लास्टिक के/लोहे के/स्टील के / शीशे के /हाथी के दांत के/ सोने के/हीरे जड़े
    बटन पहचान बन गए हैं,
    आदमी के .

    लेकिन कवि यह कहने में सफल रहा है कि आधुनिकता बटन जैसी 'गुड टू हैव' फीचर है, 'मस्ट टू हैव' नहीं --
    शुरू शुरू में
    नहीं हुआ करता होगा यह
    तो भी
    बची होंगी
    मर्यादाएं
    ढके गए होंगे
    बदन
    बिना बटन

    पौर्वात्य संस्कारों के प्रति कवि का आग्रह अनुकरणीय है,
    मेरी कमीज़ में
    लगे हैं कई तरह के बटन
    एक बटन बाबूजी की पुरानी कमीज से
    उतार कर लगाई है.

    कविता संवेदना के स्तर पर उतनी गहरी छाप नहीं छोड़ती पुनश्च पढ़ कर संतुष्टि मिलती है. धन्यवाद !

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  19. बटनों से भरी जिन्दगी, हर काम के लिये एक।

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  20. कमाल है!!! एक बटन ...मनमोहक प्रस्तुति

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