बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

भीतर मेरे कोई सिसकता है

जब

दुनिया का शोर

निस्तब्ध हो जाता है

भीतर मेरे

कोई सिसकता है



कभी

चाँद को देख कर

अपने एकाकीपन को

करता है दूर

तो कभी

जुगनुओं को बंद कर

मुट्ठियों में

रोशन करता है

अपने भीतर के

अँधेरे को



भेजता है

सन्देश हवाओं से

कि उनसे कहना

न हो उदास

होगी अवश्य

सुबह नई

मुस्कुराती सी



कहता है

गौरैया से

जाओ उन्हें जगाना

धीरे से

टूटने न पाए

मीठा स्वपन



दुनिया का शोर

शुरू होने से

पहले

खामोश हो जाता है

उसके

भीतर का अँधेरा

और एक हंसी मुखौटे सी

जाती है पसर

चेहरे पर.

18 टिप्‍पणियां:

  1. उसके

    भीतर का अँधेरा

    और एक हंसी मुखौटे सी

    जाती है पसर

    चेहरे पर

    शब्दों में उडेला अंतस का दर्द.
    बेहतरीन अभिव्यक्ति.

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  2. 5.5/10

    प्रभावी लेखन / सुन्दर भाव
    उम्मीद के द्वार खोलती, संबल प्रदान करती सुन्दर पोस्ट.

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  3. जब

    दुनिया का शोर

    निस्तब्ध हो जाता है

    भीतर मेरे

    कोई सिसकता है

    mere saath humesha iska ulta hi hua hai ... badhiya nazm hai ...par sambhavna bahut hai ...

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  4. दुनिया का शोर

    शुरू होने से

    पहले

    खामोश हो जाता है

    उसके

    भीतर का अँधेरा

    और एक हंसी मुखौटे सी

    जाती है पसर

    चेहरे पर.
    Bada khushnuma khayal hai!

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  5. दुनिया का शोर

    शुरू होने से

    पहले

    खामोश हो जाता है

    उसके

    भीतर का अँधेरा

    और एक हंसी मुखौटे सी

    जाती है पसर

    चेहरे पर.

    .....बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..

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  6. बढ़िया रचना गहरे भावों की !

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति . भावपूर्ण रचना

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  8. ज़्यादातर लोगों के साथ यही होता है कि वो अपने मन की सिसकियों को ज़िंदगी के शोर में दबा देते हैं या हँसी का आवरण ओढ़कर सहज होने का अभिनय करते हैं. क़ैफी सहब ने भी कहा है कि
    तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
    क्या ग़म है जिसको छिपा रहे हो.
    आपकी कविता भी वही कह रही है. एक ईमानदार अभिव्यक्ति!

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  9. दुनिया का शोर

    शुरू होने से

    पहले

    खामोश हो जाता है

    उसके

    भीतर का अँधेरा

    और एक हंसी मुखौटे सी

    जाती है पसर

    चेहरे पर.

    उम्मीद की एक हल्की सी किरण ही जीवन का सम्बल बन जाती है और नयी सुबह का आगाज़ हो जाता है…………………एक बेहद सुन्दर रचना सकारात्मकता की ओर ले जाती हुयी………………मानव मन की अनुभूतियों का सटीक चित्रण्।

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  10. बहुत अच्छा लिखा है आपने.
    आपका लिखने का अंदाज़ बहुत ही खूबसूरत है
    गद्य को पूर्णता देती कविता भी सोचने को विवश करती है.

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  11. पता नहीं, शब्दों में स्वाद होता है कि नहीं, पर बड़ी मीठी कविता।

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  12. वाह....

    भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति....

    स्निग्ध सुन्दर रचना !!!

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  13. और एक हंसी मुखौटे सी

    जाती है पसर

    चेहरे पर

    हंसी के साथ दुनिया साथ देती है ...अंदर के दुःख को छिपाना पड़ता है ...अच्छी रचना

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  14. जब दुनिया का शोर
    निस्तब्ध हो जाता है
    भीतर मेरे कोई सिसकता है .......
    भावपूर्ण रचना .

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