मैं कभी भी
मारा जा सकता हूँ
कभी भी कोई आकर
भोंक सकता है मुझे
त्रिशूल
कोई खदेड़ कर मुझे
कर सकता है
तलवार आर पार
कोई मुझे
शूली पर चढ़ा सकता है
कभी भी
या फिर
गाडी में बंद कर
फूंक सकता है
भीड़ के साथ
मैं नागरिक हूँ
एक सहिष्णु देश का
मेरे गाँव को
साफ़ किया जा सकता है
गोमूत्र से
शुद्धि की जा सकती है
गंगाजल से
और इस विधान से शुद्ध गाँव में
दी जा सकती है किसी की भी बलि
सामूहिक रूप से उत्सव के तौर पर
एक बार मैं
लटक गया था खेतों के मेढ पर लगे पीपल से
जब खड़ी फसल में लग गया था फुफूंद
एक बार मैं
रेल की पटरी पर सो गया था
जब बाढ़ बहा ले गई थी फसल
एक बार रेत दिया गया था मेरा गला
सूदखोर महाजन के हाथों
इसी सहिष्णु देश में
मैं दब जाता हूँ पहियों के नीचे
फुथपाथ पर सोते हुए
जबकि वह पहिया कभी चला ही नहीं होता है
या फिर कोई चला ही नहीं रहा होता है
उस पहिये को
मेरे बच्चे खदेड़ दिए जाते हैं न्यायलय से
और न्याय की देवी मुस्कुरा रही होती हैं
मूंदे आँखे इसी सहिष्णु देश में
मेरी ही हड्डियां मिली हैं हर बार खुदाई में
मंदिरों के प्रस्तर में /मंडियों की सीढ़ियों में
राजदरबारों के प्रेक्षागृह में
मैं ही हारा हूँ बार बार
इस सभ्यता की यात्रा में सदियों से
मैं नागरिक हूँ
एक सहिष्णु देश का।