मंगलवार, 20 जुलाई 2010

अपराधबोध


चुन कर
लाया था
ओस के कुछ मोती
पहनाने को
तुम्हें हार
लेकिन
धूप में सूख गए


चाहता था
देना तुम्हे
कुछ सितारे और चाँद का
उपहार
लेकिन
हो गयी अमावस


तुम्हारी राह में
बिछा दिए थे
फूल ही फूल
आ गए
साथ कांटे भी
छलनी हुआ
मैं भी

14 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन भावाव्यक्ति………………बहुत सुन्दर्।

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  2. कम शब्दों में अपरिमित अभिव्यक्ति

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  3. umda rachna hai ! love leads to attention and some times due to XYZ reason we not able to give time or hurt the loved once then comes the guilt feeling which described above nicely...

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  4. बहुत सुन्दर ...
    काँटों से जरा बचकर

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  5. तुम्हारे राह में
    बिछा दिए थे
    फूल ही फूल
    आ गए
    साथ कांटे भी
    छलनी हुआ
    मैं भी

    बहुत खूब .. अब उनको दर्द होगा तो दिल हमारा भी तडपेगा ....
    खूबसूरत छनिकाएँ हैं ...

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  6. बेहतरीन भावाव्यक्ति. इतना अपराध बोध भी अच्छा नहीं!!!!!!!!!!!! सामने वाले को भी अपराध बोध हो जाये. गलती खुद करो और नाम किसी और का इससे तो ओस के मोती रात को लाये होते तो कम से कम उस बेचारे मेरे सूरज का नाम तो बदनाम न होता

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  7. बहुत बढ़िया,
    बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....

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  8. वेदना में डूबती उतराती पंक्तियाँ।

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  9. बहुत सुन्दर...करना कुछ चाहा और ग्रसित हो गया मन अपराधबोध से ....हर नज़्म एक से बढ़ कर एक

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  10. चुन कर
    लाया था
    ओस के कुछ मोती
    पहनाने को
    तुम्हें हार
    लेकिन
    धूप में सूख गए

    जबाब नहीं - बहुत सुंदर

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  11. ye pyar ki inteha hai ki unke dard me aapko dard ho,unki udasi me aap udas ho,sunder rachana...

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