गुरुवार, 22 जुलाई 2010

तुम्हारा आँचल

तुम्हारा आँचल
आँगन है मन का
जिसके कोने में
अमरुद के पेड़ पर
गौरैया ने जने हैं
कुछ अंडे
ध्यान रखना
टूटे नहीं वो !

तुम्हारा आँचल
कुआं है मन का
जिसके पनघट पर
ए़क सांवरिया भरती है
अपना यौवन घट
और इन्तजार करता है उसका
कोई चुपके से
शोर मत मचाना
वरना टूट जायेगी चुप्पी
और उसकी तपस्या

तुम्हारा आँचल
है आसमान
विशाल विराट विस्तृत
जिसमें मैं परिंदा
भरता हूँ अपने डग
खुद से लेते होड़
थक जाने तक

तुम्हारा आँचल
है वृक्ष की छाया
बनाये रखना
अपने आँचल की छाँव
मेरे सर पर
जैसे रखती है माँ

14 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हारा आँचल
    है वृक्ष की छाया
    बनाये रखना
    अपने आँचल का छाव
    मेरे सर पर
    जैसे रखती है माँ
    Behad sundar!

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  2. वाह! बहुत सुंदर भाव पूर्ण कविता

    भाव बनाए रखिए

    आभार

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  3. तुम्हारा आंचल आंगन है मन का से प्रारम्भ हो'कर

    बनाये रखना
    अपने आंचल की छांव
    मेरे सर पर
    जैसे रखती है मां

    तक पहुंचना प्रेम की पराकाष्ठा है ।

    सुंदर भाव !
    अच्छी कविता !
    बधाई !

    शस्वरं पर आपका सदैव हार्दिक स्वागत है !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  4. माँ का आँचल सारे दुख समेट लेता है।

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  5. बेहद सुन्दर भावमयी प्रस्तुति।

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  6. baat sirf shabdon kee nahin, un kalpanaaon ke aseem vistaar kee hai, jahan itne komal, jazbaati ehsaas umadte hain...bahut hi badhiyaa

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  7. bhai saheb , mujhe dukh hai ki main itne din is blog se door kyon raha .. naman aapki lekhni ko .. kya kavita likhi hai , yaar ek eke shabd apne aap me ek katha hai ...maarmik katha .. jeevan ki har chaanv se bahrpoor ..waaah bhai waah , ab to ek baar aana honga aapse milne ..

    badhayi

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  8. is kavita ke har antare ke bhav man ko chhute hai,aanchal ki upama ke naye vistar adbhut hai...badhaiyen

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  9. Bhai....aapne to dil chhu liya.
    bahut sunder ...... badhai!

    www.ravirajbhar.blogspot.com

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  10. बड़ा सुक्ष्मावलोकन किया है. बेहतरीन अभिव्यक्ति हर बात दिल को छूती हुई, दिल के करीब ले जाती है.

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