मन में
उग आये हैं
जंगल
जो
भरे हैं
कैक्टस से
कैक्टस
जिसे नहीं चाहिए
रिश्तों का जल
वो
फलता फूलता है
अकेला
मन में
उग आया है
अकेलेपन का
जंगल
अकेलापन
जो उपजता है
संबंधो को
खर पतवार की तरह
उखाड़ने से
और
बढ़ता जाता है
बेहिसाब
निजता की
छाव में
मन में
उग आयी है
निजता का
छाव
मन में
जवाब देंहटाएंउग आया है
अकेलेपन का
जंगल
जंगल में पेड़ों की सरगोशियाँ तो होंगी ही
भावपूर्ण रचना
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंएहसास की रचना
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंachi rachna
badhai aap ko is ke liye
बहुत सुंदरता से अकेलेपन और निजता को लिखा है
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
जवाब देंहटाएंakelaepan ka sunder chitran kiya hai..
जवाब देंहटाएंper apne mann ko kaise samjhaun, mujhe to in rishton kee mithaas chahiye
जवाब देंहटाएंइस सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...
जवाब देंहटाएंनीरज
हमेशा की तरह लाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत धारदार और तीखा लिखा है.जारी रखिएगा
जवाब देंहटाएंसादर
सम्पादक
अपनी माटी
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