सोमवार, 7 जून 2010

मैं और जंगल

मन में
उग आये हैं
जंगल
जो
भरे हैं
कैक्टस से

कैक्टस
जिसे नहीं चाहिए
रिश्तों का जल
वो
फलता फूलता है
अकेला

मन में
उग आया है
अकेलेपन का
जंगल

अकेलापन
जो उपजता है
संबंधो को
खर पतवार की तरह
उखाड़ने से
और
बढ़ता जाता है
बेहिसाब
निजता की
छाव में

मन में
उग आयी है
निजता का
छाव

10 टिप्‍पणियां:

  1. मन में
    उग आया है
    अकेलेपन का
    जंगल

    जंगल में पेड़ों की सरगोशियाँ तो होंगी ही
    भावपूर्ण रचना

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  2. बहुत सुन्दर
    एहसास की रचना

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  3. बहुत सुन्दर

    achi rachna

    badhai aap ko is ke liye

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  4. बहुत सुंदरता से अकेलेपन और निजता को लिखा है

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  5. अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।

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  6. इस सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...
    नीरज

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  7. बहुत धारदार और तीखा लिखा है.जारी रखिएगा


    सादर
    सम्पादक
    अपनी माटी
    अपनी माटी

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